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________________ CSIRISTOTRIOTSICI5105 विधानुशासन MEDISCISIOTECISION समास मद सदक प्रसधादि सिद्धं सिद्धार्थ कादि वर मंगल वस्तु शस्तं सौवर्ण पात्र निहितं सदना मर्दा मुद्धारयामि गणि वृन्द पदाम्बुजागे ॐ हीं अर्ह नमो अष्ठदल पूजाया पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा इत्यष्टदलार्चनम् ॥१०॥ अथ षोडशदल पूजा चक्रवर्ति कटके द्विषण्णव योजने समुदितारिवल शब्दान् सं करव्याति करेण विनाद्राक श्रृणवंतो मुनिवरान प्रयजेतान् ॥१॥ ॐ हीं अर्ह णमो संभिन्ने सोदराणां जल मित्यादि नीलाअंनाया विलयाविरक्तः पुरुर्यथा तददिहेक हे तुम् प्रतीत्य बुद्धान् विनिवृत्तसङ्गान प्रत्येक बुद्धान् परमानुपासे ॐ हीं अर्ह णमो पत्तेय बुद्धाणं जल मित्यादि ॥२॥ विशिष्ट कर्मो पशमादुपदेशा दिना विना स्वतो विरज्य निःसङ्गान स्वयं बुद्धान् यजामहे ॐ ह्रीं अर्ह णमो सयं बुद्धाणं जल मित्यादि प्रति बोधनेन बुद्धान सगराधिपवद् विसृष्टभव सहान् बोधित बुद्धान् शुद्धानुपामहे तोट गंधायैः ॐ ह्रीं अर्ह णमो योहिय बुद्धाणं जल मित्यादि ॥४॥ व्यक्तं मनःकाट वचः कृतार्थ सुविस्मृतं चिंतित मन्यदन्टीः जानन्ति येतान् ऋजुमत्यभिरल्यान् मुनीन् मन पर्यविणो भजामि ॥५॥ ॐ ह्रीं अर्ह णमो उजु मदीणं जलमित्यादि काय मनोवचनकतान् व्यक्ता व्यक्तांश्च विस्मृतानन्यांन अन्य मनः स्थान मनसाभिजानंतोऽचामि विपुल मतीन् ॐ ह्रीं अर्ह णमो विउल जल मित्यादि ॥६॥ CSCISTOTRICISISTRI5015 ३३८ PIECISIOSCORDISCISION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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