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________________ ese5e3e39595 fangenaa Y50505050505 ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रीं ह्रः असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचक्राय झौ झौं गणधर समूहेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। कर्पूर कुंकुम हिमाम्बू करवितेन सद्गंध सार तरु कल्पित कर्द्दमेन संसार संज्वर निधारण कारमेल जं चर्चयामि गणिनां चरणाम्बुजानि ॥२॥ ॐ ह्रीं ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचक्राय झौं झौ नमः गणधर समूहेभ्यो गर्ध निर्वपामीति स्वाहा शाल्य क्षत्तान पतुषान प्रथितानखण्डान् राका शशांक शकल प्रबल प्रकाशान् स्वापवर्ग फल बीज गणाराभान् चक्रे पदेषु गणिनाम धिरोपयामि ॥३॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रः असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचक्राय झौं झौं नमः गणधर समूहेभ्यो अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा । पुन्नाग पूरा कुहली करवीर जाती मंदार कुन्द वकुलाब्ज सहादि पुष्पैः सत्के त्कै मरुबकै रsपि हृद्य गन्धै संपूजयामि गण वृन्द ममन्द भक्तया ॥ ४ ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचक्राय झौं झौं नमः गणधर समूहेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा स्थाल स्थितं विधुकलाऽमल शालि भक्तं पकान्न शाक परमान्न सिताज्य युक्तं आराधनाय गणिनां गुणमंडिताना मग्रे करोम्य मृत पिण्डमिवाति रम्यम् ॥ ५॥ ॐ ह्रूं अस आउसा अप्रति चक्रे फट विचक्राय झौं झौं नमः गणधर समूहेभ्यः चरुं (नैवेद्य) निर्वपामीति स्वाहा । USPSY52/52/5P505 1× POR5PSI やってらす
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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