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________________ CERITICISIOTSIDAIC5 विधानुशासन HASIRISTRISORSCISCESS अथ संकल्प ॐअद्य भगवतीमदादि ब्रह्मणोत्रिलोक्य मप्टो मध्यास्तेजंबू वक्षोपलक्षित जंबूदीपे सुमेरुदक्षिण दिग्भागेभरत क्षेत्रे आर्यखंडे अस्मिन् विनय जनिताभिराभीजयनगरे श्री मूल नायक चैत्यालय प्रदेशे एतद् अव सर्पणी काला वशानं प्रवर्तमान कलियुगाभिधान पंचम काले महति महावीर स्वामि धर्मोपदंश व्यति कर श्री गौतम स्वामी प्रतिपादित श्रेणिक महामंडलेश्वर समाचरित महाराज धिराज स्वाहा जित राज्य प्रवर्तमान सबत ......। प्रवर्तमान मासोत्तम मासे ..... |शुभे पक्षे .... तिथौ .....। वाशरे शुभ ग्रह नक्षत्र होरा मुहर्त लग्न युक्तायां मूलसंधा बलात्कार गणे सरस्वती गळे कुंद कुंदाचार्यन्वे गोत्र नाम्नार्थ इष्ट कार्य सिद्धयर्थ सकलारिष्ट निराकरणार्थ इदं गणभृत्यं स्तोत्रं मंत्र.....। संख्या आराधन संकल्प करिष्ये श्री रस्तु || अथ पूजा प्रकारो वक्ष्यते श्रियः सुरवाकर्षणमऽस्ति यावगार्णश चकं तदुपासकानां तावच्च संसार सुरयोपभोगविद्वान् हरती श्रियमऽर्चयामि ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री देवी आगच्छ आगच्छ अन्न तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः मम सन्निहितो भव भव वषट इदं जल मित्यादि गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ गणेश चक्रं निज पूजकानां मुक्ति श्रियो वश्यामलं करोति - तत्कोणगां ह्रींमपि लोक वश्यं करोत्यततस्तामपि पूजयामि ॥२॥ ॐ ह्रीं ह्रीं देवी आगच्छ आमच्छ अन तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः मम सन्निहितो भव भव वषट इदं जल मित्यादि गृहाण गृहाण स्वाहा॥ संसार रोगस्य करोति यावदुच्चाटनं चक्रमुपास का नाम तावद् घतिश्चाप्य पते रमीषां करोति चोच्चाटन मा राजे ताम्र ॥३॥ ॐ ह्रीं घृति देवी आगच्छ आगच्छ अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः मम सन्निहितो भव भव वषट इदंजल मित्यादि गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ अज्ञान विद्वेषण मात्मनीनं गणेश चक्र करते बुधानाम् कीर्तिश्च तत्कोणगताह्य कीर्तेः करोति विद्वेष मतो यजेताम् ॥४॥ 050512I501525250E३३२ PISTRISTD35121510151052IES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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