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________________ CTERISTRISTOTRIOTICE विधानुशाशन ARRESTERIOTSICIATRIES ॐ ह्रीं इवी श्रीं अहं ॐ णमो लोए सव्व सिद्धाय दणणं हां ही हूँ हाँ हअप्रति चके फट विचकाय असि आउसा झौ झौ स्वाहा ॥ ४७॥ इस मंत्र से राज पुरुषादिक का वशीकरण होता है। ॐ ह्रींचीं श्रीं अह ॐणमो भयबद्दी महदि महावीर वढ्डमाण बुद्ध ऋषीणं चेदि हां ह्रीं हूं ह्रो हः अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा नौं सौं स्वाहा ॥४८॥ समाधि सुरवं प्राप्नोति इस मंत्र से पुरुष समाधि सुख को पाता है। इति मंत्रफलं इति गण भृति कल्प मंगलास्तु अतगण भत्य मंत्रस्य करन्यास अंगन्यास ॐ हीं अंगुष्टाभ्यां नमः ॐ इवीं तर्जनीभ्यां नमः ॐ श्री मध्यमाभ्यां नमः ॐ अहं अनामिकाभ्यां नमः ॐ णमो अरिहंताणं कनिष्ठाभ्यां नमः ॐ हां करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॐ हीं करपूराय नमः ॐ हं हृदयाय नमः ॐ ह्रौं शिरशे स्वाहा ॐ ह्र: शिखायै वौषद् ॐ अप्रति चके फट विचक्राय कवचाय हुं ॐ असि आउसा नेत्र प्रयाय ॐ इवीं झौं झौं अस्त्राय फट ॐ हीं इवीं श्री अह ॐ णमो अरिहंताण हा ही हूं हौं हः अप्रतिचक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौं झौं स्वाहा।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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