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नित्यं यो गण मन्मंत्रं विशद्ध स्मन्पठत्य ऽमुं आश्रव स्तस्या पुण्यानां निर्जरा पाप कर्मणां नस्यादुपद्रवः कश्चिद व्याधि भूत विषादिभिः
सदसरीक्षणं स्वप्रे समाधिश्च भवेन्मतो जो पुरूष शुद्ध होकर इस गणधर वलय मंत्र को पढ़ता है उसके पुण्य का आसव होता है और पाप कर्मों की निर्जरा होती है। उसके रोग भूत विष आदि से कोई कष्ट नहीं होता । यह स्वप्न CTERISTRISTRISITEST250 ३२२ DISITORSCICISIOIDROSCAN