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CASTOTRICKETCTRICISCE विद्यानुशासन HEACTRICISIOTICIATION चतुर्विशतिपदान्यालिरवेत् हीं कारमात्रयात्रिगुणं वेष्टियित्वा कोंकारेण निरूद्धय
वहिः पृथ्वी मंडलं विलिरवेत् ॥ पहले छ कोण वाले चक्र के मध्य में मां पीठाक्षर को लिखें, उसके ऊपर अर्ह रखे । उसके दाहिनी तरफ इवीं और बाई तरफ ह्रीं लिखें ।पीठाक्षर के नीचे श्रीं लिखें । श्रीं कार के दक्षिण से शुरू करके उत्तर तक प्रदक्षिण देता हुआ असि आउसा स्वाहा वेष्टित करे। फिर छहों कोणों में सव्य मंत्र अप्रति चक्रे फट लिखे और कोला के अंतरालों में विचलाय स्याहा अपसव्य मंत्र के छहों बीजों को बीच बीच में झौं बीज रखकर बाई ओर से लिखें फिर कोणों के अग्रभाग में में श्री ही घृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी इन छ देवियों को प्रदक्षिणा देते हुये लिखे उसके बाहर एक वलय बनाकर आठों पत्रों में णमो जिणाणं - णमो उहीं जिणाणं णमो परमोहि जिणाणं- णमो सवेहि जिणाणं- णमो अणंतो जिणाणं णमो कुट्ट बुद्धिणं णमो यीज बुद्धिणं णमो पादारि सारिणं इन आठ पदों को हर एक के पहले ॐ हीं अहँ लगाकर पूर्व दिशा की ओर से क्रमपूर्वक लिखें उसके बाहर उसीतरह से सोलह पत्रों में ॐ हीं अर्ह णमो संभिणं सोदराणं से शुरू करके ॐ ह्रीं अर्ह णमो दिहि यिसाणं के अंत तक सोलह पदों को लिखें उसके बाहर उसीतरह से चौबीस पत्रों में ॐ ह्रीं अर्ह णमो उग्गत्तवाणं इस पद से शुरू करके ॐ ही अर्ह णमो भयवदों महदि महावीर वट्ठमाण बुद्ध रिसीणं चेदि तक के चौबीस पदों को लिखे इसके बाहर तीन बार हीं से वेष्टित करके क्रों से निरोध करे |उसके बाहर पृथ्वीमंडल लिखे।
ॐहीं इवीं श्रीं अह असि आउसा अप्रति चक्रे फट
विचकाय झौं झौं स्वाहाअनेन मध्ये पूजां विदध्यात ॥ इस मंत्र से बीच में पूजा करे।
ॐ णमो जिणाणं इत्यादि हां ही हं हौं हः असि आउसा
झौं झौं स्वाहाएते अष्ट चत्वारिंशत्पत्र पूजा मंत्रा ॥ इस मंत्र से ४८ पत्रों की ऋद्धि की पूजा करे।
श्री गणधर वलय यंत्रं समाप्तं
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