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ಉಡುಪಚಡ5' ಔಷYER ಅಳದಂಗಡಣೆ
| स्वप्न सिद्धि
ॐहीं इवी इवीं अहं श्री णमो जिणाणं मित्यादि ॐ ह्रीं अह अटुंग महाणिमित्य कुशलाणं-हां ह्रीं हुं ह्रौंह: अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौं झौ स्वाहा ॥
इत्येतत्सप्तदश पदाश्रित मूलविद्या सित सुगंधि कुसुमैरष्टोत्तर शतंजप्त्वा शयना
सनस्ट भविष्य द्विदिक्षित कार्य यथावत प्रतिभाति ॥१॥ उपरोक्त मंत्र सत्रह पदों वाले मूलमंत्र के श्वेत तथा सुगंधित पुष्पों से १०८ जपकर सोये हुवे पुरूष को आगे होने वाले इच्छित कार्य ठीक ठीक विदित हो जाते हैं।
ॐहीं अर्ह णमो विउठवण इट्टि पताणं ऊहीं आई णमो विज्जाहराणं ॐ हीं अहं णमो च्चारणाणं ॐहीं अह णमो पण समणणं ॐहीं अहं णमो आगास गामीणं अयं पंच पद मंत्रः शुद्धाद्वि शिष्टे वट वृक्ष मूले नाना शास्त्राणि निशि तौदग धाराणि सुगंधि पुष्पाक्षिते रभि मंत्र्य तद्विष्टप संबद्ध मष्टोत्तर शत रज्जु शिवयं नमः सिद्धेभ्यः इत्यनुस्मर मारुहा प्रति रज्जु मनं तरोक्त मंत्रं पठन् शिवयं
कमतः छिंद्यात् आकाश गामिनी विद्या सिद्धयति ॥ २॥ यह पांच पद का क्रम मंत्र है। शुद्धि आदि से युक्त बड़ के वृक्ष की जड़ में तेज धार वाले अनेक शस्त्रों को सुगंधित पुष्प तथा अमातों से अभिमंत्रित करके उस वृक्ष में १०८ रस्सी वाला एक छीका लटकाकर, फिर ॐ नमः सिद्धेश्य मंत्र का ध्यान करता हुआ छींके पर घटकर प्रत्येक रस्सी पर मूलमंत्र को पढ़ता हुआ क्रम से छींके को काट डाले। आकाश गामिनी विद्या सिद्ध हो जाती है।
ॐहीं अह णमो आस्सी विषाणं ॐहीं अहं णमो दिहि विषाणं अनेन द्विपद मंत्रेण गोशीर्षचंदनेन यंत्रमुद्धार्य अष्टोतर शतंजप्तवा विष दष्टं पायगेत स्थावर जंगम विषनाशयति
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