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________________ SASICI5015197510051015 विद्यानुशासन BASICI51025105131513155 इस दो पद वाले क्षेत्र से गोरोचन तथा चंदन से यंत्र बनाकर मंत्र को १०८ बार जपे हुए जल को इंसे हुए को पिला दें तो स्थावर जंगम विष नष्ट होता है। ॐहीं अह णमो उगत्तवाणं ॐहीं अह ॐ णमो दिततवाणं ॐहीं अहं णमो तत्तत वाणं ॐ ह्रीं अहं णमो महातवाणं ॐ हीं अह णमो घोरत्तवाणं ॐ हीं अहँ णमो योर गुणाणं ॐहीं अह नमो घोर गुण परकमाणं ॐ हीं अहं णमो योर गुण ब्रह्मचारीणं हां ह्रीं हूँ हौंह: अप्रति चक्रे फट् विचक्राय असि आउसा झौं झौं स्वाहा। अष्टपद मंत्र अष्टोत्तर शत पुष्पैं: जंपन महायुद्ध तस्कारदीन नश्टोत ॥ यह आठ पद का मंत्र है पुष्पों से १०८ बार जपने से महायुद्ध और चौर आदि नष्ट होते हैं। ॐ ह्रीं अहं णमो आयो सहिपत्ताणं ॐ हीं अह णमो खेलो सही पत्ताणं ॐ ह्रीं अह णमो जलो सहिपत्ताणं ॐ ह्रीं अह ॐ णमो विपो सहि पत्ताणं ॐ हीं अह ॐ णमो सयो सहि पत्ताणं हां हीं हूं ह्रौंह: अप्रति चक्रे फट विचक्राय असि आउसा झौं झौं स्वाहा ॥ अयं पंच मंत्रः गोशीर्ष चंदनेन यंत्र मुद्धार्या अनेन पंचपद मंत्रेण अष्टोत्तर शत सत पुष्पै जपत्वा तद्गांध पानीटोन आतुरं पाययेत गुल्मशूलप्लीहातीसार तीव्र ज्वर कुष्ट गंडमालाऽदयो नश्यति ॥ गोरोचन और चंदन से यंत्र बनाकर इस पंच पद मंत्र को पुष्पों पर १०८ बाप जप कर उसका गंदोदक रोगी को पिलाये तो बायगोला का दर्द, तिल्ली, दस्त, तेज, बुखार, कोढ़ और गंडमाला आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। ॐ हीं अहं ॐ णमो मण बलीणं-ॐ ह्रीं अर्ह णमो दचि बलिणं-ॐ हीं अहं णमो काय बलिणंहांहीं हूं हौंह:अप्रतिचक्रे फट विचक्राय असि आउसाझौंझौं स्वाहा॥ इति त्रिपद मंत्र अष्टोत्तर शत पुष्पैज्जात शार्दूलादि पाप सत्वेभ्योभयं न जायते।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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