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________________ PSP5959‍5 विद्यानुशासन नाग्नि कैवल्य कांतारिविकसित नयनायांग सौभाग्य भाग्भिः सौरभ्यांशक्त भृंग व्रतति मलि निमां स्मेर व मन्हि: षट् कोण व्याप्त गांगेया मत्र मध्य मापित कलम महविः पायषा मोदहृटयैः निवेद्यै वाष्प पूरा त्परममृत भुजां प्रीति मुत्पादयाद्भिः - 1 पुष्पं ॥ -- 959595959526 कैलासा धंद्यानिः श्रियमति विशदं सारदीसभ्रलीलां त्रैलोक्याकाश मध्ये गणधर महिमां तेजसा दर्शयद्भिः षट्कोण व्याप्त - नेवैद्यः नीतं पापांधकारं दिसिदिसि निखिलं नाम तानासयद्भिः पै दैदीप्यमानः कनक मनिग्भावे रत्न कपूर कल्पैः षट्टकोण || दीपं ॥ धूपैरंगार संगा तद्ध वित परमले धाण पेौरमीभि दिक्यालानां वद्यातु क्षिति तल विरहां नीलया रावताभेः मुक्ति स्त्री वश्य रूपैरगुरु वन सटी सेवनास्तिं प्रगातैः षट्कोण॥ धूपं ॥ आदो मोदामेदि वासा युवति पन मोहारिभिः सत्पुलौयैः प्रत्यपूजका नामभिमत फलादैः स्वर्ण वर्णं सुपकैः द्राक्षा खर्जूर काम क्रमुक रूचक सं ज वुजे वीरभेदिः षट्कोणं ॥ फलं ॥ इत्थं षकौण चक्रं निखिल गण भृतानाम मंत्रावृतं यस्तोयाद्यै रचनांगै र्यजति जपति चाध्यायति स्तौति भक्त्या सोयं देवेन्द्र लक्ष्मी नरपति महिमां संयमः श्री प्रसन्नां पश्चा जै निंद्र लक्ष्मीं विलय विरहितां मोक्ष लक्ष्मी प्रयाति: ॐ ह्रीं इवीं श्रीं अहं असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचक्राय जलआदि अध्ये निर्व्वपामीति स्वाहा अनेन विधिना मध्य पूजां विदध्यात् ॥ इस विधि से पूजा करो । 955 525951971 ३१७P5Psex 559625
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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