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________________ 0505RISIOI5015125 विधानुशासन 25005095OSDIEOS झौं झौं स्वाहांत गर्भभुवन पति जिना झौं नमो होम युक्त स्ता पात्रे पटे वा कनक गणिक्रया लिख्य सौगंध गं?: अभ्य व्याय सदाग्रे परम जिनसंजापन वालमा हस्त प्राप्ता महीनामलक फ मिव स्वेष्ट सिद्धिं प्रयांति ॥३॥ ह्रीं क्वीं श्रीं अर्ह असि आउसा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय झौं झौं अत्रावतरावतर संयौषट आहननं ॐ हीं इवीं श्रीं अर्ह असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचकाय झौं झाँ अप्रतिष्टतिष्ट ठः ठः। स्थापनं ॐ ह्रीं इवीं श्रीं अर्ह असि आउसा अप्रति चक्रे फट विचकाय झौं शौं अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। सन्निधिकरणं कपूरामोदमक्त भ्रमर गण कृत श्लाघद्य तीर्थ वारां। भंगार स्फार नालादिह सुक्त लता वृद्धि मा पादयं त्यागंधाभ: स्वच्छ धारामिव धवधि मया धारयाता हसंत्या षटकोण व्याप्तमध्यं गणधर वलयं यंत्रमाराधयामि॥जल।। माघ द्विदंति गंडस्थल जसनदी गद्य लोलत्कालिमाला व्याजनिशौरभै स्तै मलाज धनसारो ध्व काश्मीर मित्रैः गंधिः पूर्णेदु वीर्भवभय परिता पापहि लेपनब्बी : षट्कोण व्याप्त माध्यं गणधर वलयं माराधयामि ॥ गंध लयं ॥ लक्ष्मी लीलाद हासैरिव विसदतया धर्म बीजांकुरा स्तभिः शुक्ल प्यानावदाते विजित सुरस रिद्धि विडिर पिंड: गुजां भूतिश्च मुक्ताफल निकर नितेरस तैर क्षतांगैः षट् कोण व्याप्त - - - - - - - - - - - - ||अक्षतं ॥ जाती सिति माल वकुल कुवलयां भोज मंदार कुंद CSCIRCISEDICICISTRICT5 ३१६ PICIPASCISIOTECISIOISSES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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