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________________ 252525252505 Raggica 952525252525 96वधानुशासन उपवास पीछे पारणा करे और केवल ज्ञान उपजे पीछे पारणा नहीं करे इनको स्मरण करने से सर्व शांति होती है। ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो धोरत्तवाणं २९ सिंह शार्दूलया कुलेषु गिरि गह्वरादिषु भयानक श्मशानेषु च प्रचुर तर शीतवाला तपदंश मशकादि युक्तेषु गत्वा दुर्द्धरोपसर्ग सहन पराणां सिंह, व्याघ, चीता आदि क्रूर जानवरों का उपसर्ग आवे । भयंकर पर्वत गुफा श्मसान में अत्यधिक | आदि सहकर दुर्द्धर उपसर्ग सहे उसे घोर तप ऋद्धि कहते हैं । शीतवान धूप ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो घोर गुणाणं ३० घोर अद्भुता महांतो गुणा येषां ते घोर गुणांण घोर वीर गुणा के धारी मुनिराजों की जनस्कार है। ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो योर गुण परक्त माणं पराक्रमी दुर्द्धर व्रत धारण सामर्थ्य घोरः अचित्यं पराक्रमो येषां तेषां ॥३१ ॥ भूत वेताल प्रेत राक्षस शाकिनी आदि घोर दुर्द्धर व्रत धारण करने को जिनका पराक्रम सामर्थ्य हो ऐसे मुनिराजों को देखते ही भय को प्राप्त हों तथा क्रूर जीव शांति का प्राप्त हों उन घोर गुण पराक्रम धारी मुनिराजों को नमस्कार हो । ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो घोर गुण ब्रह्म चारीणं ३२ घोर दुर्द्धरोगुणा निरति चारता लक्षणो यस्य तत घोर गुणां दिव्यां गुणां लिंगनादि भिरप्य क्षुभित चितं अथवा घोरा अद्भुताः गुणा यस्मात्प्राणिनां भयंति तत घोर गुणं तच्च तद्ब्रह्मचर्यं तच्चरत्यनु तिष्टं तीत्येवं शीलानां अतिचार रहित घोर दुर्द्धर दिव्य गुणों से भूषित ब्रह्मचर्य शीलधर्मका पालन करने वाले ऐसे मुनिराज जिनके चरण सिंह व्याघ्र आदि से सेवित हैं, जिनके स्मरण मात्र से जन्मान्तर के बैर शांत होय उनको नमस्कार हो । ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो आमो सहिपत्ताणं ३३ आम अपक्क आहार: सर्व औषधि तां प्राप्तानां आम ऋद्धि के संयोग से समस्त रोग व अपक्क आहार के रोग जाते रहे, आम औषधि धारक मुनि को नमस्कार हो । 959595959 ३१२P959595959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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