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________________ S50150151015015105 विधानुशासन ASSIS1055050500 कंते तदा ऋद्धि वृद्धि नीरोगतादि करणे तेषां सामध्यां तपः प्रभावात् इष्टि विशेष एवहितें ताशोनपुनःपुनरूपकारमपकार तातेकस्य चित कुर्वति शत्रो मित्रे च तेषां परमोदासीन तो पेतत्वात् तबबल से मुनि क्रोध को प्राप्त कर पंख हो मनुष्य गृत्यु को पाया है।ष्टि मात्र से दूसरे को देख करने की जिनकी सामर्थ्य होती है। अगर प्रसन्न दृष्टि से देखे तो ऋद्धि वृद्धि निरोगता आदि करने की जिनकी सामर्थ्य होती है। तप के प्रभाव से उपकार और अपकार विचारने मात्र से कर सकते है तथा स्थावर जंगम विष दृष्टि दृष्टि मात्र से दूर होवे ऐसी शद्धि के धारी मुनियों को नमस्यार हो। ॐ ह्रीं अह ॐ णमो उग्गतवाणां २५ से पंचम्यांऽष्टम्यां चतुर्दश्यां च प्रति ज्ञातोपवसा लाभ दो प्रो या तथैव निर्याह यंति ते ये च प्रकार उग्र तपसः पांच उपवास आठ उपवास बार उपवास पंचमी, अष्टमी, चतुर्दशी को उपवास ग्रहण किया है, जिन्होंने उनको अगर उपवास पारण का अलाभ होय तो फिर उपवास करे। तीन उपवास, चार उपवास, पांच उपवास करके काल का निर्वाह कर गमौव इसे उग्रतप कहते हैं। ऐसे उयतप करने वाले मुनिराजों को नमस्कार हो। ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो दित्तत वाणां २६ तपः प्रभावोदभूतया देह दीप्त्या प्रस्तांध काराणां शरीर की दीप्ति कर बारह सूर्य का तेज जिनमें होय उसे दीप्त ऋद्धि कहते हैं। शत्रु सेना बाण में भस्म करने की शक्ति दीप्त ऋद्धि से होती है। ॐही अह अणमो तत्तत्तयाणं २७ तप प्रभावा देव तप्तायः पिंडयतित जल कणवत गृहीत अहार शोषणान्नीहार रहिताणां गरम लोह के पिंड में जल की बिन्दु भस्म होय उसीतरह ग्रहण किये हुए आहार का शोषण कर आहार रहित से दिखे उसे तप्त कृद्धि कहते हैं। दावानल अग्नि भी जो शांत करे ऐसे तप्त तप कृद्धि धारी मुनिराजों को नमस्कार हो। ॐहीं अह ॐणमो महातवाणं २८ पक्ष मासापयासाऽद्यनुष्टान पराणां पक्षमास, षणमास, वर्षोपयास करने वाली मुनि महातप्तय ऋद्धि धारी कहलाते है। वर्ष CTERISTICISRADRISI05275 ३११PISTR525015015050ISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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