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CASIOISTOTRICISIOTECTET विद्यानुशासन RELICICISCIRCISEAST
ॐ हीं अहंॐ णमो बीज बुद्धिणं विशिष्ट क्षेत्रे कालादि सहाय मेकमप्युप्त बीज अनेक बीज प्रदं यथा भवति तथैक बीज पद ग्रहणांऽदनेक पदार्थ प्रति पतिर्यस्यां बुधौ सा बीज बुद्धिः
सातपः प्रभावाद्विाते रोषांते बीज युद्धटाः उभयत्र तद्योगानच्छष्टयं ॥७॥ जिस तरह से क्षेत्र कालादि की सहायता पाकर एक बीज से अनेक बीजों की उत्पत्ति होती है। उसी तरह एक बीज अक्षार से शेष शास्त्रों को जाने से बीज बुद्धि जिन के तप के प्रभाव से रहती है।
ॐ ह्रीं अह ॐणमो पादाणु सारीणं पादाणु सारीणं आदावंते टात्र तत्र चैकपद ग्रहणत समस्त ग्रंथस्यात् तस्यावधारणं सम्मांगद्धौ सा पादानुसारिणी बुद्धि सा तपो माहात्म्यादि
द्यते येषां ते पदानुसारि बुद्धटाः आपत्वानुद्धिशब्दा प्रयोगः ॥८॥ जिस तरह से किसी ग्रंथ का एक पद के ग्रहण करने से समस्त ग्रंथ उनकी बुद्धि से जाने या याद रहते हैं।
ॐही अह ॐणमो संभिन्न सोदराणं समस्त शब्द प्ररूपक मुनि भिन्न कहने वालों को नमस्कार हो सम्यतं कर व्यति रेकेण भिन्नं विविक्तं शब्दरूपं श्रुणो तीति संभिन्न श्रोत्री बुद्धि द्वादश योजनायाम नव योजन विस्तार चक्रवर्ति स्कंधा वायरोत्पन्न नर करमाद्यक्षरानक्षरात्मक शब्द संदोहस्या न्योन्य विभिन्न स्यागपत प्रतिभासो बुद्धौ सत्यां भवति मा संभिन्न श्रोत्रीत्यर्थ सा तपः प्रभावद्विधेते टोषां ते संभिन्नश्रोतारः ॥९॥ ॐहीं अहं ॐ णमो सयं बुद्धाणं : अपने आप वैराग्य के कारण कुछ न देखकर बिना दूसरे के उपदेश के बैरागी हो वह स्वयं
ये वैराग्य कारणं किंचिद् दृष्ट्वा परोपदेशं
वानपेक्ष स्वयमेव वैराग्य गतास्ते स्वयं बुद्धा। ॐ हीं अर्ह ॐ णमो पत्तेय बुद्धाणं प्रत्येक बुद्धि ऋद्धि धारी मुनि को नमस्कार हो गुरुह नागादि भाममदद्यादी जिनके प्रताप से शांत होते है ।
प्रत्येकान्त्रिसिता बुद्धा प्रत्येक बुद्धा यथा अंजना
दिलयात् वृषभनाथ ॐ हीं अहं ॐ णमो बोहिय बुद्धाणं योधित हे बुद्ध ज्ञान जिनमें उनको नमस्कार हो। ಗಣಪಥಳಥಣಿತ 8o4Yವಣಣಣಣ