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________________ SSIOSCADRISTORST विद्यानुशासन DISTRISTRISTR52505 ये वैराग्य कारणं भोगाशक्ता शरीरादिष्यशाश्वतादिरूपं प्रदा वैराग्यं नीता स्ते बोधित बुद्धा यथा सगर चक्रवर्ती ॐ हीं अर्ह णमो उन मदीणं-सूक्ष्म पदार्थ अनेक जानने याले अनुमति माली शांति पुष्टि के करता ऋद्धिधारी मुनि को नमस्कार हो। प्रजु मतिर्मनः पर्यय ज्ञानिनां मनपर्यय ज्ञान के धारी मुनिराजों को नमस्कार हो। ॐ हीं अह ॐणमो विउलमदीणं विपुल मति मनः पर्य ज्ञानिनां विपुल मति ज्यौ ॥१४॥ मनः पर्ययः ज्ञान के धारी मुनि सर्यशास्त्र के धारी क्षण क्षण मात्र में हो उनको नमस्कार। ॐ ह्रीं अह ॐ णमो दश पुरवीणं अभिन्न दश पूर्व धारिणं दस पूर्व के धारी मुनि राओं को नमस्कार हो। ॐ ह्रीं अहं ॐ णमो चउदश पूथ्वीणं उत्पातादि चतुर्दश पूर्याणा चौदह पूर्व के धारी मुनिराजों को नमस्कार हो। ॐ ह्रीं अह ॐ णमो अटुंग महानिमित्त कुशलाणं अष्टांग महानिमित्त कुशलाणं ॥ १७॥ अंतरिक्ष भौम अंग स्वर व्यंजन लक्षण चिन्ह स्वप्न यह आठ महानिमित्त सूर्य यन्द्रग्रह नक्षत्र उदय अस्त के लक्षण जानकर शुभ अशुभ फल कहे सो अंतरिक्ष निमित्त उद्यान वापि का पर्वत नदी सरोवर आदि लक्षण जानकर भूमिगत रत्न सुवर्णादि को जाने यह भौम निमित्तज्ञान तिर्यग अथवा मनुष्यों के लक्षण प्रकृति रस रूधिर प्रमुख्य धातु को देखकर शरीर वर्ण गंध उच्च अवयव को देखकर जो निमित्त ज्ञान उत्पन्न हो वह अंग निमित्त है। ॐहीं अर्ह ॐ णमो विउदयणं इहि पत्ताणं विविधा किया अणु मह दादि रूप तया काया दे: कारणं यस्यामद्धौ सा विक्रिया ऋद्धिः तां प्राप्ताणां ॥१८॥ OSSISTOTSIRISTRI50151075 ३०९DI5DIDIOSRISINISTICISIOISS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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