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________________ 959695959विधानुशासन 2595929695 दक्षिण श्रवणं कुष्ट चंदनाभ्यां विलिप्य तत् स्पृशन्नष्टोत्तर शतं तेष्वाद्ये नाभि मंत्रयेत् ॥ १८ ॥ शुद्ध अष्टमी चतुर्दशी अथवा पूर्णमासी को उपवास करके रात्रि में भगवान अर्हत की स्तुति पूर्वक पूजन करके दाहिने कान पर कूठ और चंदन का लेप करके उसको छूता हुआ एक सौ आठ बार अभिमंत्रित करके । मृत जीवन भयो कार्य किमपि चिंतयेत् स्वाप्याश्चवाम पार्श्वेन सुप्तो रूपं य दीक्ष्यिते ॥ १९ ॥ श्रृणोति वा यचोयं च तेन विद्यां बुधाः शुभ अशुभं वाऽपि तन्मिथ्यां कदाचन भविष्यति || 70 || दुग्छ जीवन मरण लाभ अलाभ आदि किसी कार्य को भी सोचकर बाई करवट से सोता हुआ जो वचन सुनता है। पंडित उसको शुभ अशुभ समझे वह कभी असत्य नहीं होगा। द्वितीयोऽति बलं कुर्यात् तृतीय शमनं रूजां चतुर्थेन औषधं जसं सिंचितं स्यात्सुधोपमं ॥ २१ ॥ स्वाहां तमो ॐ ह्रीं मुख सप्त वर्ण तत पूर्वका है परतों नमो है विदिग्निशोराधतः क्रमेण मायावृतस्य त्रिगुणं लिषंतु ॥ २२ ॥ इति गणधर वलय मंत्र: पहले "ॐ नमो जिणाणं से ॐ नमो आगास गामीण" तक जप करने से स्वप्न सिद्धि होती है । दूसरे "ॐ णमो उग्गत्तवानम ॐ णमो घोर गुण ब्रह्मचारीणं” तक जप करने से अत्यंत बल करता है । तीसरे "ॐ णमो आमी सहिपत्ताणं से ॐ णमो सव्वाोसहि पत्ताणं" तक जप करने से रोगों को शांत करता है। चौथे "ॐ नमो खीर सवीणं सप्पिसविणं मुहर सवीणं अमीय सवीणं" जप करने से और मंत्रित औषधी देने से यह अमृत के समान हो जाती है। ॐ ह्रीं आदि सात वर्णों के पश्चात हैं और फिर नमो हैं लगाकर अंत में स्वाहा लगाये इस मंत्र को रात्री में विशाओं की तरफ मुख करके आराधना करता हुआ माया (ह्रीं) से तीन बार वेष्टित करके लिखे । ॐ ह्रीं हैं श्रीं झौं नम: है नमो है स्वाहा इति गणधर वलय मंत्र सहस्त्राभ्यऽधिक लक्ष प्रमाणं पूर्व सेवया समाराध्य पश्चात पार्श्वनाथ सन्निधौ विशंति 959595959595PA ३०३PSPSPS 9/5961951
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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