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________________ S5DISEASOISRIDOS विधानुशासन 91501501505IOSRISH प्यातं तथैव साध्ये सित वर्णमिदं करोति निर्विषतां धूम प्रभ मुच्चाट नील युति मोहनं तस्य ॥११॥ उसी प्रकार साध्य में श्वेत ध्यान किया जाने से यह विष को दूर करता है। धुएँ के जैसा रंग का ध्यान किया जाने से उच्चाटन करता है। नीले वर्ण का ध्यान किया जाने से मोहन करता है। व्या वर्णित मत्यद्भुत मिति गणधर वलय सामथ्र्य अथ शक्तिं कथयाम्यहमपि गणधर वलय मंत्रस्य ॥११॥ इसप्रकार गणधर वलय की अत्यंत अद्भुत सामर्थ्य का वर्णन किया गया है। अब गणधर बलय मंत्र की शक्ति का वर्णन किया जाता है। सिद्धोमंत्रः कुरुते सजपादामुत्रिकार्य संसिद्धिः षटकर्म कर्म वत्वं नष्टादि ज्ञानमपि मेयां ॥१२॥ यह मंत्र सिद्ध होने से इस लोक में तो कार्य सिद्ध करता है छहो कर्मो में कर्मशीलता करता है। नष्ट वस्तु का ज्ञान करता है और अत्यंत बुद्धिदायक है।। तस्यांतर्वतिनो मंत्रा यंत्रस्थाद्धत शक्तयः विविधाः संति ते गम्या गुरुणामुदेशत् ॥१३॥ उसके अन्दर के और मंत्रो को भी बड़ी अद्भुत अनेक प्रकार की शक्तियाँ है जिनको गुरू के उपदेश से ही जानी जा सकती है। कय्यंति तन्वतिषु च त्वार स्तेषु संचक्रेस्थादों णमो जिणाणं त्विति तेषामवयवः प्रथमः ॥१४॥ उस मंत्र के मुख्य चार अवयव है या भाग है जिनमें से ॐ णमो जिणाणं पहला अवयव है। आगास गामिनां घोर गुणादि ब्रह्मचारीणां सर्वोष ऋद्धी प्राप्ता नामऽमतश्रा विणामऽपि झो झौं स्वाहा वसानानि नमस्कार पदानिवै तेषां चतुणां मंत्राःस्युःक्रमतो मध्य वर्तिनां ॥१६॥ आगास गामीणं से घोर गुणादि ब्रह्मचारीणं तक दूसरा अवयव है । सब औषधि की ऋद्धि प्राप्त करने वाले मंत्र तीसरे और अमृत टपकाने वाली ऋद्धि मंत्र चौथा अवयव है । अन्त में झौं झौं स्वाहा और नमस्कार के बाद में उन चारों के बीच में रहने वाली ऋद्धि के मंत्र है। शुद्धाष्टम्यां चतुर्दश्यां पंच दस्थामऽथापि या कृतोपवासः शर्वयाँ स्तूत्वाऽहतं समा च SASCISIOTSIDESIRISTRISES ३०२/5105DISTRISTOT5105105 ॥१७॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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