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________________ SSCISSISTOISTRIES विधानुशासन 505CISCSCRIOTES और दूसरे कोणों में अपसव्य मंत्र विचक्राय स्वाहा लिखे। इसके बाहर थन्द्रमा के समान उपायल चंद्र मंडल बनाया जाये। इसके पश्चात उस यंत्र को गणधर वलय नाम के मंत्र से घेर देये। उसके बाहर चंद्रमंडल और फिर पृथ्वीमंडल बनावे। ॥६ ॥ मंत्रण प्रादिगमण यश्चक्र प्रार्चाये दिदं। उपसर्गान तस्यस्य श्चौर मायादिभिः कता । जो पुरूष अप्रादि गर्भ मंत्र से इस यंत्र का पूजन करता है उसको चोर या शत्रु आदि से किये हुये उपसर्ग नहीं हो सकते हैं। ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं हः अप्रति चक्रे फट् विचक्राय झौं झौं स्वाहा अप्रादि गर्भ मंत्र: वश्य मंत्रः यह अप्रादि गर्भ मंत्र है। तलोध्याश लसत्साध्य साध्यका तय गर्भितं कंभोदरे जिनाग्रे वा पूजितं वशये दिदं ॥७॥ अप्रदि गर्भ मंत्र के नीचे साध्य और ऊपर साधक के नाम को लिखकर उसे घड़े के पेट में या जैन मंदिर में रखे और इसका पूजन करे तो वशीकरण होता है। मध्यस्थातुर संज्ञं तच्चकं गंधाक्षतादिभिः त्रिरात्रं सप्त रात्रं या पूजितं सर्वरोगजित् ॥८॥ हकार के मध्य में आतुर (रोगी) का नाम लिखकर इस गंधर्वलय चक्र का गंध अक्षत आदि से तीन रात या सात रात तक पूजन करने से सब रोग जीते जाते हैं। साध्यास्य हृदयं पूर्व व्यश्रुवानं तत स्तुनु सर्व पीतमिदं प्यातं स्यादति कोधरोध कत् ॥९॥ साध्य के हृदय को पहले सुनता हुआ फिर उसकी कल्पना इस यंत्र में करके इसको पीला ध्यान करने से साध्य के क्रोध का स्तंभन होता है। कृष्ण वर्ण तथैवेदं ध्यायते स्निग्धयोर्द्वयोः तयोः परस्पर द्वेषः सप्त रात्रात प्रजायते ॥१०॥ यदि स्निग्ध पुरुषों के बीच में इस यंत्र का कृष्ण रूप में ध्यान किया जाये तो उनका सात दिन के अन्दर आपस में विद्वेषण हो जाता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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