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________________ 5015015015015105 विधानुशासन PSRISDISCORPISOIST इस मंत्र से भी आरोग्य सिद्धि होती है। ॐणमो जिणाणं ॐ णमो अमिय सवीणं नमः हां ह्रीं हूंहौंह: अप्रति पके फट विचक्राय असि आउसा झौं झौं स्वाहा । अनेन च दियौषधि सिद्धि : इस मंत्र से भी दिव्य औषधी की सिद्धि होती है। ॐणमो जिणाणं ॐ णमो वट्ठमाण बुद्ध रिसीणं नमःमम बुद्धि वृद्धि रस्तु हां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: अप्रति चके फट विचकाय असि आउसा शौं जो स्याहा। अनेन दिव्य वाक सिद्धिः इस मंत्र से वाणी की सिद्धि होती है। इत्येवं मंत्रा अद्भुत शक्तयः तथा चोक्तं भट्ट हस्ति मल्लेनः इसप्रकार से यह सब मंत्र बड़ी अद्भुत शक्तियाले है जैसे कि भट्ठारक हस्तिमल्लिषेणने कहा है। दूसरी विधि हिमैला गुरू कपूर रोचना शित सर्षपैः लवंग कुष्ट दुर्या ग्रौशीरादीश्च सुपेषितैः ॥१॥ हिम (लाल चंदन) इलायची अगर कपूर गोरोचन सफेद सरसों लोग कूठ सहित उग्रा (वय) और खस आदि को अच्छी तरह पीस कर उनसे - - - - रैसूच्या जाति कांडेन वहिषायाधया उपातैः फलकै: भूर्ज भुप्र ताम्र पटे टाथा ॥२॥ लिखे षट्कोण चकस्ट मध्ये बिंदु युतां नमः कोणो दषु सटोना प्रति चक्रे फंड लिरवेत् ॥३॥ सोने की कलम मोर की पूँछ अथवा डाभ की कलम से तखती भोजपत्र या ताम्रपत्र पर षटकोण चक्रे के बीच में विंदु सिहत नभ (ह) लिख कर कोनों में सव्य मंत्र अप्रति चक्रेफट लिखे। अपसव्यं विचक्राय स्वाहा कोणांतरेषु च बहिरस्मात् स्फुर चंद्र नीकाशं चंद्रमंडलं भूपुरंततः ॥४॥ गण भरलयारन्टोन मंत्रैण तत्प्रवेष्टयेत् लिखेदऽस्मात् बहिश्चंद्र मंडलं भूपरंततः ಚಡಚಣದ 3೦೦YOYಪಥಸಪ5
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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