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9595959595 विधानुशासन 959595959595
श्री पार्श्वनाथाय नमः
उवसग्ग भिवहजिण चरण निणमि सिर सास णाद भक्तीये । कलिकुंड चयेयं कम्म सहस्सा निवारेयि ।
कम्मा समसयलकवणं वा बारं क्रूर दिट्ठि उवसग्गे तंवारयति निग्धं कलिकुंड सुणीविद कथं ।
ररके वा पर विज्ने थंभनपर विद्ये मोहणे वसीयरणं तुठितंमण मारण विद्या विदेश कम्मभियं मोदारवीय मझं णामं यं लिखं वसुदयं पदवे अंगुल वो सुजुता चालण वीरांदले दले नियमा मूयं दलवणों लिक्यं सोह जुंग वाइणिर माहय कलिकुंड देवपूजा असयं कुण हरोपम मुणोहिं कर कंठ वाहु देशे धारई दवरक्क सहाणेणियमा सयल गह मूय शारणि ररटकाअरणं महायोरं
अयं रक्षायत्र
अर्थः- उपसर्ग हरण पार्श्वनाथ जी के चरण मस्तक से नमस्कार कर भक्ति सहित कलिकुंड यंत्र की पूजन करे !
कर्मसहश्र निवारण करें ।
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कर्म सकल नष्ट होये यह कालिकुंड पार्श्वनाथजी ने कहा है राक्षस कृत उपद्रव, पर शत्रुकृत उपद्रव पर विद्या, मोहन, वशीकरण, स्तंभन, मारण, विद्वेषन कृत सब कर्म नष्ट होय भोजपत्र व वस्त्र पर लिखकर कंठ, बाहू में धारे तो तत्काल शाकिनी ग्रहभूत घोर उपसर्ग नष्ट करें।
सिटयवसण कंस लिख्कह अंगुल वीयाणीणाम वेठेद्यं । आभिय करमंत वे ठई मुणिवर कलिकुंड तमंतं । सिटाटयं कय सर पूरक कलजु बत्तीस जोभणी सव्वं । आयकर मतं वेर आमिरांत सत्तणह वलयं पाइयं ॥ इसेय वसूण गंध लेविज्ज रोगि देहपर णासई । सव्वजण परविद्या णासणाई सन्ति परं ।
PPP८ २८३P/5195195
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