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________________ CADRISTOTRIOTECTICE विशनुशासन ASTRIDICTICISCISCESS यंत्रस्य चिंता हृदोस्ति यस्य सद्धर्मरक्ता यतशील युक्ताः बध्यापि सत्पुलवती भवेत्सालोके क्रमात् स्वर्ग सुख प्रथांति ।। स्मरंति यंत्रस्य विधानमेनं नसअहिंसादि गुणा प्रयुक्ता। ज्वर ग्रहणादी रूजोत्र तेषां प्रयांतिनाशं कुलिकुंड याता सुरासुरैशैरपि सेटयमानं समस्त दोषोज्झित बीजमालं ॥ यत्रं नराये कलिकुंडमेतेयेतन्नित्यं भजंत्यत्र भयं न तेषां। सर्वाग्नि तोयाहिं विषादि विद्यायांति क्षयंटस्ट वर प्रसादात्। तत् श्री जिनेन्द्रस्य सरोज जातं नित्यं नमः - अर्थ:- देवाधिदेय भगवान कलिकुंड पार्श्वनाथजी के चरण कमलों को पूजें नमस्कार करें। मुक्ति के सुख की सिद्धि के लिए पवित्र कलिकुंड मंत्र की स्तुति करता हूँ जो नर भली भक्ति से पूजा करें तो सर्व विघ्न नही होय यंत्र के प्रसाद से चित्तकमल में आपका गुरू के उपदेश से निरंतर ध्यान करे तो सिंह आदि दुष्ट मृग उसको पीड़ा नहीं देखें। युक्ति से स्तये तो सर्वदोष हरे और उत्तम पद होय मोक्ष पावे पाप रहित लक्ष्मी श्रेष्ठ मनोहर सुख पावे। अगर इसको प्रतीति सत्य मन में रखे। यंत्र का स्मरण हृदय में रखे सत्य धर्म में लीन रहे शीलव्रत युक्त होय तो बंध्या के पुत्र होय लोक में अनुक्रम में स्वर्ग सुख पाये। यंत्र का स्मरण करे समस्त दोष दूर करे या विधान करे जीवरक्षा गुणयुक्त हो तो ज्वर संग्रहणी दूर होय सुर असुर निष्चय सेवा करे समस्त दोष दूर करे । जो इस यंत्र को धारण करे निरंतर भजे तो भयभीत न हो। सर्व अग्नि जल विष सर्वविष विघ्न दूर होय यंत्र के प्रसाद से मगर जिन चरण कमल को नित्य नमस्कार करे। ॥ इति कलि कुंड कल्प समाप्तः ।। CSIRISTOTHRAICISARASTRAM २८२PISTRICISIODRISRASIDASI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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