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________________ SOSOR52502525T05 विधानुशासन 57255125505250 कषाय चतुष्टय काट कुठार निरामय नित्य नरामर सार विदार्ण धनाधन विपकरंड सदासदयोदय जटा कलिकुंड ॥५॥ अनल्प विवल्प विहीन विकल्प विशल्प विसूल विसर्प विदर्प विरोग विभोग विरवंड विमुंड सदा सदयो दय जय कलिकुंड ॥६॥ फणीश नरेश महीश दिनेश सुमेश गणेश मुणीश विदर्क विकाशित शतदल तुंड सदा सदयोदय जय कलिकुंड॥७॥ विशोक विशकं विमुक्त कलंक विकाशित विश्व विदूरित पंक कला कुल के बल चिन्मय पिडं सदा सदयोदय जल कलिकुंड ॥ ८॥ निकंदित मोह महीरूह कंद वरप्रद सत्यद सपदं मंदं त्रिदंड विरवंडित माय विरवंडसदा सदयोदटा जयकलिकुंड ॥९॥ याता:- कलिलमल नदक्ष योगि टोग्योपलक्षादय विकलिकलिकुंडोदंड पार्थ प्रचडं शिवसुरव श्रुम संपदास कल्ली वसंतं प्रतिदिन मह मीडे वर्द्धमान रिटी सिद्धौ निलयलि जल मलया तदुल कुसुमोरू परिमला ममलां॥ कलिकुंडाय समज्ञ ऋद्धयैः ददानि कुसुमांजलिं भक्तया। ॥ इति कलिकुंड जयमाला समाप्तः ॥ इदानीं स्तोत्र द्वारेण कलिकुंड मभिधीयते। देवाधिदेव जिन भायटातं देवाधिपैचंचित पाद पञ नत्या जिनेन्द्रं शिव सौरव्य सिद्धौस्तोष्टये पत्रि कलिकुंड यंत्र। पूजा प्रकुर्वति नरा सुभक्त्या यंत्रस्थो श्री कलिकुंड नाम तेषां नराणामिद्द सर्वविद्यानस्यत्ययश्यं भुवि तत्पपसात् ।। चित्ताबुजे ये स्व गुरूप्रदेशोप्याटांति नित्यं कलिकुंड यंत्रं सिहादयो दुष्ट भगा स्तुलोके पीडां न कुर्वतिनणां चतेषां युक्तां स्तुंधति कलिकुंड यंत्रं सर्वेसदोषा पह युक्तमत्तं मोक्षानध श्री पर चारु सौरव्य प्राप्ति स्तुते तेषां भवतीह सत्यं । CASTOISODIOSRADICAD215| २८१P3510151259IDIDIHOTSIOISS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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