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________________ विद्यानुशासन 95959059519 9595195959 क्षरदक्षर पीयूष पूरा पूरात्म नोजसा कलिकुंडक भागस्य झपिंडारांधकं भजेत् । ॐ ह्रीं इम्ल्यू ॐ ह्रीं ॐ आं को ही दिधत्यादि पोषं पूर्ववत् ॥ दुष्टकर्माष्टि कोद्राममातंग मद भेदिनः । कलिकुंडैक भागस्थं स पिंडाराधक भजेत् ॥ ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं ॐ आं कों ह्रीं सपिंडाधिष्टते त्यादि शेषं पूर्ववतं ॥ श्री चंडोग्र पार्श्वस्य खसौरव्य विमुख्यस्यवै । कलिकुंडैक भागस्थं खपिंडाराधकं भजेत् ॥ ॐ ह्रीं रम्ल्यू ॐ ह्रीं ॐ आं कों ह्रीं खपिंडाधिष्टतेत्यादि शेषं पूर्ववत् ॥ जलगंद्यामल तदुलपुष्पैन्नैवेद्य दीप धूप फलैः कलिकुंड दंड मंडन पार्श्वशस्यावतार या म्यये ॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं कालि कुंड दंड पार्श्व प्रभवे अर्ध्यमवतारयामि स्वाहा | अर्ध इत्यष्ट पिंडानां प्रत्येक पूजाः । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं कलिकुंड दंड स्वामिन्नतुल बल वीर्य पराक्रम आत्म रक्ष रक्ष पर विद्यां छिंद छिंद भिंद भिंद स्फां स्फीं स्क्रू स्क्रौं स् स्फः हुं फट् स्वाहा । अनेन मंत्रेण अष्टोत्तरशत जपं कुर्यात् । इस मंत्र का १०८ बार जाप करना चाहिये अथाशीर्वाद : : सर्पित्सपेंशदप स्फुट तरल तरोत्तर फूत्कार वेला ॥ संवतत्पत्ति वाताहत शठ कमठोद्भूत जीभूत जातान् ॥ खेलत्स्वर्गापवग्गीतिज्र्ज्जल जनित सल्लोल डिंडीर पिंडं ॥ व्याजात श्री पार्श्वरो ज्वल विजय यशोराज हंसोवताद्वः । ॥ इत्याशीर्वाद: ॥ PSPSPSPSSP २७८P/59595 551
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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