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________________ CTERISTOTSIRIDICIDE विधानुशासन DVSSIST5RITICISIS ॐ मोमादि समाराध्य माराध्या राख्यातां ययः चिवस्त्यमित्य हमिह कलिकुंड श्रिये श्रिटो ॥ अर्थः- कलिकुंड यंत्र कल्याण सुख मंगल का कर्ता है कलिकुंड चिंदानंद खंड पिंड नमोस्तुते। पारखंड खडनो दंडवतो कत वृतो॥ अर्य:- कलिकुंड अलंड पिंड को नमस्कार है यह पाखण्ड का खंडन करने वाला, सत्य स्वरूप प्रगट करने वाला है तत्वांतर्वतिने तत्वा तत्व बोधेद्ध सिद्धये। तुभ्यमुद्य चिदानंद सपदे संपदे नमः ॥ अर्थः- तत्व की पहली बात से तत्य ज्ञान की सिद्धि करती है। उद्यातकारी चिदानंद को नमस्कार हो जो संपत्ति लक्ष्मी करता है । संसाध्या सिद्ध संसिद्धि संसाध्य सिद्धये श्री मते कलि कुंडाय नमोस्तेश्रुद्ध बुद्धटो। अर्थः- सुखकर साध्य है सिद्ध सुख सिद्ध देती है शोभायमान कलिकुंड को नमस्कार हो जो शुद्ध और बुद्ध है। कलिकुंड सुधा कुठे निमज्जन्मनि संत्वयि। चित्पिडा खंड शोभाग्य महोन्जोन्नोप सर्यति ।। अर्थ:-अमृत कुंड से उपज्या है चमत्कारी अखंड सौभाग्य का कर्ता है महान उपसर्ग को नहीं होने देता है। नरअमर के ईश्वर हो प्रसन्न चित्त हो सुलभ को दुर्लभ नहीं है। नरामराहीश्वर मूतयस्त्वयि मपि प्रसन्ने सुलमान दुर्मभा। यत्वत्प्रसादादः भवतः सभोग्यपि प्रभोविद्योगीश्वर भोग भोग्यपि ।। अर्थ:- आपके प्रसाद से सब भोज्य सामग्री मिलत है भगवान को भोज्यसामग्री प्रिय है। विवियक विभूति भूषिणं त्वामुपति विनिवृतं भूषणं । कानि कानिकलिकुंड दंडिनं वाधितानि न भजति भक्तिका॥ अर्थः- विघ्न निविघ्र होय कयि की सीमा होती है अशोभनीय भी शोभा पाती है। कोने कोने में कलिकुंड का भक्त मनो वांछित फल पाता है। CRORTOISODEDIC75125 २७९PISIOTSID05120505101505
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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