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________________ STORISTOISRTSRISE विद्यानुशासन SISTOISRTSDISCISI अभिचार कता रोगा विष स्थावर जंगमाः इत्ये वमांदयो रोगाः प्रशमयांति तत तणात् अर्थः-इससे उस साध्य की दर्द, हैजा, पुरानी खाज, और फोड़े आदि से होने वाली की किसी प्रकार की अपमृत्यु नहीं होती है। अर्थ:-अभिचार से होने वाला रोग स्थावर और जंगम विष तथा अन्यप्रकार के रोग भी उसी क्षण शांत हो जाते हैं। गर्भिण्टापि सुखेनैव प्रसूतै स्तैस्तनु मव्यथा मृतवत्सापि जीवं तं वंध्यासु लभते सुत। दुर्भागाशुभागां चैव पुष्पिता स्यादपुष्पिता चंदनेनामुना योगादा लिपसि दिन प्रति। अर्थः- गर्भिणी के बड़े सुख से बद्या होता है बधा मरजाने वाली के पुत्र चिरायु हो जाते है। और बंध्या को भी पुत्र की प्राप्ति होती है बदसूरत स्त्री सुंदर हो जाती है मासिक धर्म से न होनेवाली के मासिक धर्म (प्रातुधर्म) होने लगता है उस चंदन के योग के प्रति उन्नति होती रहती है | सिद्धंयति कार्य सर्वाश्च स्वयंमेव मर्गादशाः, न केवलं राज वश्यं जन वश्यं भवत्यदं ॥ अर्थः-मृगनयनी स्त्रियों के सब कार्य स्वयं सिद्ध हो जाते हैं। इससे केवल राज वशीकरण ही नहीं होता बल्कि सभी लोग वश में हो जाते हैं। ज्वर मुष्णं शीतले च शीतले वारिणार्पित उष्णोदके स्थितं यंत्रं ज्वरं नाशय व्यद्धतं ठंडे जल में यंत्र को डालने से गरम बुखार और गरम जल में डालकर देने से शीत ज्वर उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं। ॥ इति फलस्या वर्णनं समाप्तं ।। कुलिकुंड यंत्र के फल वर्णन समाप्त हुआ। STEPISISTERISISTER1505 २७२P750501505DISCISCISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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