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________________ SARKARISTOTRICISIS विद्यामुशासन EPISOISIO505OSS ॥ यंत्र अभिषेक विधि॥ इदा नीम अभिषेक विधी समभिधीयते संसाध्यारिवल कल्याण मालो टेलोटाः श्रियम ॥ कलिकुंड मरवण्डात्मा भीष्ट मारोपयाम्यहम अनेनाह्वानन स्थापनं सन्निधीकर्णनि कुर्यात्॥ ॐ ह्रीं श्री क्लीं ऐं है कलिकुंड दंड स्वामिन् अतुल बल वीर्य पराक्रमअत्रावतर अवतर अत्र आगच्छ आगच्छ अत्रतिष्ट अत्रमम सन्निहितो भव-भव संवौषट् हुं फट् स्वाहा॥ अर्थ:- अब अभिषेक विधि का वर्णन किया जाता है सब प्रकार के कल्याणकारी कार्यों को करने वाले लदमीवान अखंडरूप कलिकुंड यंत्र का साधन करके अब इच्छा किये हुये कार्य को आरंभ किया जाता है (इसे पढ़कर आह्वानन आदि करे) अर्थः- इसके पश्चात एक शोक से कलश की स्थापना करके दूसरे से कलश से स्नान कराये तया तीसरे से आठों प्रकार का द्रव्य चढ़ाकर पूजन करें फिर एक-एक श्लोक बोलकर यंत्र को क्रम से जल केले द्रव्यादि के रस घी दुष्प नदी गंधोदक अर्थात् मुशित जल से स्नान करावें। सत्पुरुष दान्माप्रविराजितेन पटेन पूणेनिसपल्लवेन, समंगलार्थ कलिकुंड देव पदाग्रभूमि समलङ्करोमि, कलश स्थापनं शुद्रेन शुद्ध सरोवर हद पल्यल कूप यापी गुग, तटाकादि समातेन। शीतेन तोयेन सुंगधिना हं भक्तयाभिविषञ्चे कलिकुण्ड यंत्रम्। नीरे सुगंधै कलमाक्षतौयैः पुष्पह विभिवर दीप धूपैः।। स्वित फलौधैः कलिकुण्ड यष्पै सम्पूजयामी भीष्ट फलायत्तया। अष्ठ विद्याचर्नम ये चोच मोचादि स दिक्षुजा ये द्राक्षा रसालादि फलोद्भवाये ऐभि रसैः स्वैरमृतोपमानै भक्त्यामि षिञ्चे कलिकुंड यंत्रम् ॥ ಗದರಿಬರಿಥಣ೯ಣಣತೆ 9986ಥಳಪಡದ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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