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CSP596959
विद्यानुशासन 9595951959नक
एवं श्री पार्श्वनाथस्य मंत्र यंत्र पवित्रत: गुरूपदेशतः प्रोक्तः सम्टागाराधन क्रमः
प्रभोः प्रसाद माहात्म्यक परिज्ञातु मर्हति स्वस्य बुद्धय नु सारेण लेश मात्र मुदिरितं
(२)
के
अर्थ:- इस प्रकार श्री पार्श्वनाथजी भगवान के पवित्र मंत्र यंत्र और अराधना क्रम का गुरू: उपदेश के अनुसार वर्ण किया गया है
(१)
अर्थ:- इस भगवान के प्रसाद से पूर्ण महत्व को तो भला कौन जान सकता है किंतु यहां अपनी बुद्धि के अनुसार थोड़ा सा ही वर्णन किया गया है ।
दाक्षिण्येनो परोधेन लाभालाभ भयादिभिः मिथ्या दृष्टौ दुविदग्धे नैव मंलं नियोजयेत्
॥ दीक्षा विधि ॥
संघ पूजां विधासासी कृत्वा तीर्थप्रभावनां गृहीयादेन माम्रायं महोत्सव पुरस्सर
(३)
लोभाद्यैर्य :
एतद् गुण विहीनेपि प्रयच्छति शिष्ट मात्मानमत्वं संतृतीयं विनाशयेत्
(४)
अर्थ:- इस मंत्र को चतुरता अनुरोध लाभ अलाभ अथवा भय आदि से मूर्ख मिथ्या दृष्टि को कभी नहीं देये जो पुरुष इस मंत्र को इन गुणों से शून्य पुरुष को लोभ आदि से देता है वह अपने शिष्टाचार, आत्मा और वंश तीनों को ही नष्ट कर देता है !
(५)
(६)
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां ग्रहणे दीप पर्वणि चंद्रा तारा वले शिष्यं शुभ लग्ने दीक्षयेदुरु अर्थ:- इस मंत्र को संघ की पूजा और तीर्थ की प्रभावना करके बड़ा भारी उत्सव मना कर लेवे अर्थ:- गुरु शिष्य को अष्टमी चतुर्दशी ग्रहण, दीपमालिका या उत्तम चंद्रमा और नक्षत्रों के होने पर उत्तम लग्न में ही दीक्षा देवे
96959595959505 २६३P5105195
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