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SASIRISTOT51251215105 विधानुशासन ADIOSDISTRISO15I015
नैवेद्य फल दीपायै एहत्संरटौ मनोरमैः पूजयित्वा प्रभुं चक्रं दधानंमस्सहैमकं
एतदादाय लभिमन राज्यादपि गरीटासा आत्मानं बहु मन्येत् श्रद्धा संवेग तत्पर
(८) अर्थ:-चौबीस उत्तम उत्तम नैवद्य फल दीप, और सोने आदि से भगवान की पूजन करके चक्र को धारण किये हुए
अर्थः- इस विद्या को लेकर श्रद्धा और वैराग्य में लगे हुए राज्य के भी लाभ से इस लाभ को बहुत अधिक समझ कर अपने को अहो भाग्य समझो
ब्रह्म चक्रे चकाधि विधिना पूर्व वासरे आराधयेदि मंतं यावज्जीव मरवंडित ।।
इति दीक्षा विधि:
अर्थ:- इस मंत्र को जन्मभर अखंडित रूप से यंत्र आदि की विधि से ब्रह्म चक्र में आराधना करे
॥ श्री पार्श्वनाथ जिनपति चक्रं मोक्षार्थेनारचितं॥ अर्थ:-यह श्री पार्श्वनाथ जी भगवान का चक्र मोक्ष की इच्छा करने वालों के यास्ते बनाया गया है।
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