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CRIOUSD150151255 विद्यानुशासन PISO505050505 अर्थ:- अग्नि मंडल तीन कोणो वाला बीच में रेफ (रकार) युक्त सात-सात ज्वालाओ से व्याप्त कोणे के अग्न भाग में स्वास्तिक तथा बीच में 3 कार से युक्त लाल वर्ण का होता है |
उर्मि बिंदु वृत्त वृत्तं कृष्ण स्वाक्षर गर्मितं चलं वायु पुरं वृतं वृतं नीलं हां कं नमः पुरं
(६३)
पार्थिव मंडलं स्तंभे धर्मार्था दौचवारिण वायव्यं द्वेषणोचाटे आग्रियं वश्य कर्माणि
(६४) अर्थ:- वायु मंडल (उर्मि विंदु) पं बीज से घिरा हुआ गोल और काले रंग का स्था अक्षर से युक्त होता है ।
अर्थः- (नभ) आकाश मंडल हा अक्षर से युक्त नीला और गोल होता है । पृथ्वी मंडल को स्तंभन कर्म में जलमंडल को धर्म अर्थ आदि में वायु मंडल को विद्वेषण और उच्चाटन में तथा अनि मंडल को वशीकरण में लगाना चाहिये ।
कार्या दिव्यादिके स्तंभे पीतं बीज विमध्यगं द्वेषे साध्य द्वयं कृष्णं परस्वर परांमुवं
रोगादिव्यसने प्राप्ते वध चौर नृप गृहे
संहारणे जपेन्मलं रिपोरू चाटने सितं अर्थः- (अग्रि) दिव्य वस्तु आदि के स्तंभन में मंत्र के बीच में पीले रंग के बीज को रखना चाहिये। अर्थः- विद्वेषण में काले रंग के साध्यों के नाम को एक दूसरे से विपरीत (परामुख) करके रखे रोग आदि कष्ट के आने पर फांसी चोरो राजद्वार मारण या शत्रु का उच्चाटन करने में मंत्र का असित ध्यान करे ।
आत्मीय पाद पतित महदक्षर मध्यगं
उदगच्छद्भास्करा रक्त वश्ये साध्ये विचंतोत् वशीकरण में साध्य को अपने पैरों में पड़े हुए अर्हत अक्षर (हैं ) के बीच में पड़ा हुआ और मंत्र को निकलते हुए सूर्य के समान लाल ध्यान करे।
CHSDISIST50150505125 २५७P/510525050510151215