SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SSIODISTRICISODE विधानुशासन PASREPISISASTRICT धम्मार्थमोक्ष विद्या सुकुदेंदु द्युति सादरं पीतं स्तंनेरूणं वश्ो कृष्ण मुच्चाटने तथा अर्थः- उस महा मंत्र की सिद्धि हो जाने पर पंडित पुरूष उपस्थित कार्य की सिद्धि पर उस मंत्र का रात्रि में १०८ या पांच हजार जप करे। अर्थ:- मंत्री धर्म के वास्ते मोक्ष के विधानो में मंत्र का कंद पुष्प तथा चंद्रमा की कांति के समान श्वेत ध्यान करे स्तंभन में पीला वशीकरण में लाल और उच्चाटन में काला ध्यान करे । अंस टंगावर येवं दिंड भामुरं ध्यायेन्मंली सितं शांती दीप्रो कार्ये यथादितं (५८) मंडलांतर्गत चकं चक्रांतं मंडलाक्षरं अक्षरांतर्गतं बीजं बीजातः साध्यनायकं (५९) अर्थ:- मंत्री उस मंत्र यंत्र के अक्षरों और देवता को शांति और दीप्ति के कार्यों में बिजली के दंड के समान चमकने याला श्रेत का ध्यान करे । अर्थ:-मंडल के बीच में चक्र चक्र के बीच में मंडल के अक्षर और अक्षरों के बीच में बीजाक्षर और बीजाक्षर के बीच में साध्य और साधक का नाम होता है चतुरस्तं पार्श्व कोणभ्यंतरेच क्षि ल अक्षर वजाकितं पीत वर्ण विस्तीर्ण भूमी मंडलं (६०) ऊर्भाधः पयुतं पार्थे वकारांकित मुज्वलं सुधा स्टांदि भवेद्वारि मंडलं कलशाकृति अर्थः- पृथ्वी मंडल चौकोर पार्श्व में क्षि अक्षर और कोणों में ल अदार वाला वज़ो से युक्त पीले वर्ण का और विस्तीण होता है अर्थ:-जल मंडल कलश के जैसे आकार वाला उपर और नीचे प अक्षर सहित पार्थ में वकार सहित उञ्जवल और अमृत बहाने वाला होता है | लिकोणं मध्य रेफं च सप्त सप्तार्चिषा कुलं कोणाग्रे स्वस्तिको ॐकार मारक्तं वह्नि मंडलं (६२) CSIRISTRISTRISIPASCISITES २५६PISDISIOTIRISTOISTICSIRISH
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy