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________________ i i 1 Qりですやめですおたお a ちぐちにちにちですぐ 950591 पूर्वाशाभि मुखो विद्वान उत्रराभिमुखोथया पूजांश्रेयोथवा जाप्यं सुधी कुय्यादिह निशं (४३) अर्थ:- पंडित पुरुष पूजन कल्याण के कार्य अथवा जाप को सदा ही पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख्य करके करे ! रजन्यां मंत्र सिद्धायथं जाप्यं कुर्यात् यथोचितं पंच पंच शतं नित्यं यद्वायावन्मन स्थिरं (४४) अर्थ:- मंत्र को सिद्धि के वास्ते रात्री के समय में प्रतिदिन पांच-पांच सो या जब तक मन स्थिर रह सके जाप करे । नाम जाप्य विद्यौ होमं कुर्याज्जाप्य दशांशत: जाये कृतेपि होमेन बिना मंत्रो न सिद्धयति (४५) अर्थ:- मंत्र के नाम की जाप की विधि में उसका दसवां भाग होम अवश्य करे, क्योंकि जाप्य करने पर भी मंत्र होम के बिना सिद्ध नहीं होता है । होम विधि शचा । होम की विधि यह है महिषाक्ष गुगुलस्य विनिर्मितं चणक मात्र वहिकाभिः होमं लिमधुर युक्तं कर्तव्यं सिद्धि मिच्छद्रिः मधु दुग्धं घृतं चैव कीर्तितं मधुर लयं एतत् वये विमिश्रास्ता होम ये दुलिका कृति (४६) (४७) अर्थ:- सिद्धि के चाहने वालों को भेसा गूगल की चने के बराबर गोलियां बनाकर उनके साथ त्रिमधुर को मिलाकर होम करे । दीर्घ विस्तार में तस्य कुंडस्टा कर मात्रतः त्रिकोणं भूमि कुंडस्याधो मार्ग वह्नि संभृतं सराव संपुटे लेख्यं षट् द्यापावक मंडलं कुंडात ः स्थापयेत चतस्यो द्धं खदिशनलं (४९) अर्थ:- - इस एक हाथ लम्बे चौडे त्रिकोण कुंड को पृथ्वी के अन्दर इस प्रकार खोदे कि नीचे का भाग अग्रि से ढका रहे । अर्थः- दो शरावों का मूह से मूह मिलाकर उनमें छह बार अग्रि मंडल लिखकर रखे फिर उन शराबों को कुंड के अन्दर रख कर उसके उपर खेर की अग्रि रखे। PSPSPSPSP5969 २५४ D510510 152605 (४८)
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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