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________________ OBIDESOTECISCTSIDE विद्यानुशासन 250015015RISTRISTICISS . एतन्मंत्र मटी रक्षा कटि बाहुशिरः स्थितां धारयेत्पुरुषो नित्यं सापद्रो विमुच्यति ॥२६॥ अर्थ:- शाकिनी आदि बड़े बड़े दोष इकातरा आदि बड़े बड़े ज्वर इसको स्मरण करने से दसों दिशावों में भाग जाते हैं। इस मंत्र की बनाई हुई राखी को कमर भुजा और सिर पर धारण करने से पुरुष सदा ही सब आपत्तियों से पट जाता है ! एतन्मंत्रस्य चक्रादि भिन्न मस्ति सविस्तरं, कलिकुंडस्य माहात्म्यं संक्षेपाद प्रकीर्तितं ॥२७॥ अर्थ :- इस मंत्र के चक्र आदि का विस्तार से कलिकुंड के माहात्म्य में पृथक वर्णन किया जाने से यहाँ संक्षेप में ही कहा गया है। अथ द्वितीय मंत्र: ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय ज्वल ज्यल प्रज्वल प्रज्यल महा अग्नि स्तंभय स्तंभा ठः ठः।। त्रि सप्ताऽनेन मंत्रेण पानीट अभिमंत्रित् प्रदीप, नादौ समटो देयं सौवीर मिश्रितं || २८॥ अर्थ:- इस मंत्र से जल को इक्कीस बार मंत्रित करके सौवीर में मिलाकर उद्दीपन आदि के समय देना चाहिये। अथ तृतीय ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय हंस: हंसः महाहंसःमहा हंसः परम हंसः परम हंसः को हंसः को हंसः शिव हंसः झरे झां हंसः पक्षि महा विषं भविह फुद स्वाहा। स्थावर जंगम कृत्रिम विषम विष स्थापि संहार सप्तामि मंत्रिम तोयं मंत्रेणानेन नाशोत् ॥२९॥ अर्थः- इस मंत्र से सात बार जपा हुआ जल स्थावर जंगम कृत्रम अथवा कठिन से कठिन विष नष्ट करता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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