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________________ PPP 59595 विद्यानुशासन 959595959595 अर्थ:- यह मंत्र कार्य को सिद्ध करता है अतएव पहले इस ही को सिद्ध करना चाहिये। इसकी सिद्धि कार्यराशि के अनुसार जप करने से होती है। द्विषट सहस्त्रे मंत्रोयं शुभाशुभ निवेदकः अर्ह त्संख्या सहस्त्रैस्तु सर्वसारस्वताव हं लौकन च मंत्रोयं चिंतितार्थ प्रसाधक: लक्ष त्रयेण पूर्णेन प्राज्य श्री कारणं भवेत् ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ सप्त लक्ष महा मंत्र पूर्णयो राज्य दायक: आ संसार विनुस्तुवि लक्ष्मी प्रदो भवेत् ॥ २२ ॥ अर्थ:- उपर्युक्त मंत्र का बारह हजार जप करने से यह शुभ और अशुभ फल को बतलाता है । चौबीस हजार जप करने से यह सब सरस्वती संबंधी कार्यो को करता है ॥ २० ॥ इस मंत्र को एक लाख जप करने से सोचे हुए सब कार्य सिद्ध होते हैं । और तीन लाख के पूर्ण होने से यह बड़ी भारी लक्ष्मी का कारण होता है | ॥ २१ ॥ इस महामंत्र का सात लाख जाप होने पर यह राज्य पद देता है और अंत में मंत्री के इस संसार से छूटने पर समस्त जगत की लक्ष्मी मोक्ष को देना है। वलये केसर स्थाने चतुविष्स्तं प्रवेष्टयेत् मंत्राक्षरैः । प्रभावाढौरेकै कंच समालिखेत् तेचामि ॐ ह्रीं लां ह्रीं आं द्रां श्री कलिकुण्ड स्वामिने नमः पार्श्वनाथ स्वामी के मंत्र वाले वलय के पश्चात चार और वलय बनाकरउनमें एक-एक करके बड़े प्रभाव वाले चार मंत्र लिखें शाकिन्यादि महा दोषा स्तृतीयादि महाज्वराः एतस्य स्मरणात्सर्वे पलायंती दिशो दिशः PAPSPSPAPSPSP २४९ PSP5PX || 23 || द्विषट सहस्र जाप्टो न जातिका कुसुमैर्वरः मंत्रेणानेन लूतादि वर्ण सर्व विजश्यति ॥२४ ॥ अर्थ:- इस मंत्र का उत्तम चमेली के फूलों से बारह हजार जाप करने से मकड़ी आदि का सब वर्ण नष्ट हो जाता है। ॥ २५ ॥ 5‍5एनएक
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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