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95959595विधानुशासन 9595296959595
यह यह है स्वां लां ह्रीं सरसुंसः हर हूं ह
फिर चक्र के ऊपर श्री खंड और उत्तम गंध वाले पुष्पों से महामंत्र १०८ बार जाप करें।
चक्रोद्धार विधिश्वाय ॥
चक्रोद्धार की विधि यह है
अर्हत्संख्या दलावृतं केशराढयं सुकर्णिकं, स्वर्ण रौप्य ताम्रादौ घी मान्यं कज मालिखेत्
॥ १५ ॥ !
अर्थ:- बुद्धिमान पुरुष सोने चांदी या तांबे ऊपर अर्हत्संख्या चौबीस दलों से घिरे हुये अच्छी केशर और कर्णिका युक्त कमल बनावें ।
देवस्य विश्व नाथ स्य वाचकं परमेष्टिन
कर्णिकायां लिखे दऽर्हन् मंत्र राजं महोदय:
॥ १६ ॥
अर्थ:- कर्णिका के अंदर जगत के स्वामी परमेष्टि का वाचक महान उदय वाले बीजराज अर्हन बीज (हैं) लिखे ।
अर्हन् तद्वहि पार्श्वनाथस्य मंत्र सप्त दशाक्षरं, लिवेदऽचित्यं माहात्म्यं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं ह्रीं लाव्हः पः लक्ष्मीं इवीं क्ष्वीं खुः पार्श्वनाथाय नमः
॥ १७ ॥
(नोट) मूलग्रन्थों में इस मंत्र में इवीं क्ष्वीं के आगे खुः के स्थान पर हुः लिखा हुआ है और पंच नमस्कार कल्प में कुः लिखा हुआ है परन्तु पूजा सार समुच्चय ग्रंथ में तथा तेरह पंथी बड़े मंदिर
बाबा दुलीचंदजी के ग्रंथ भंडार पार्श्वनाथ चक्रोद्धार में तथा यंत्र में कांत बीज (ख) पांचवीं कला सहित अर्थात् उ सहित (खुः) लिखा हुआ है इसलिये यहां पर हु के स्थान पर खु लिखा है। उस अर्ह बीज के बाहर आचिन्तय महात्म्यवाले सांसारिक भोग और मोक्ष के देने वाले भगवान पार्श्वनाथ के इस सत्रह अक्षरी मंत्र को लिखे ।
मूल मंत्रोद्यमाख्यातः सर्व कार्य प्रसाधकः जायं होनादिकं सर्वं कुटादितेन सिद्धयो मंत्रसाधयते कार्य पूर्व साध्यः सण्वहि । सिद्धि र्भवे जाप्य जपात्सजपोराशि गोचर:
॥ १८ ॥
॥ १९ ॥
अर्थ:- इसे सब कार्यों के सिद्ध करने वाला मूलमंत्र कहा है। इसकी सिद्ध के वास्ते जप, होम आदि सभी कुछ करना चाहिए
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