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SIDASIDISTRISTRISADI विधानुशासन 9501501510651015CISI
मंत्र स्नानं ततः कुर्यात त्रिवारकुंभ मुद्रया। आत्मरक्षां ततः शरव मुद्रया सकलीक्रिया
॥८॥ फिर कुंभ मुद्रा से तीन बार मंत्र स्नान करे और इसके पश्चात शंख मुद्रा से अपनी रक्षा करके सकलीकरण करें।
स्नानादि मंत्राश्च अजमते, अमोहदे अपना धार्षिणी मलावट सं सं क्लीं क्लीं ब्लं ब्लं दां ट्री द्रीं दी द्रावय द्रावय हं हं इचों क्ष्वी हंसः स्वाहा॥
स्नान मत्रोयं क्षिप स्वाहा हा स्वाहा पक्षि पंच भूतात्मिकोऽय रक्षा मंत्र। वामकरांगुष्टादिषु विन्यस्यैकैकम क्षर अनुलोभ प्रतिलोभ निवम् भूत बार्ववित्
॥८॥ अर्थ :- इन अक्षरों में से एक एक को बायें हाथ की अगूंटी आदिअंगुलियों के अनुलोम (सीधे) और प्रतिलोम (उलटे) क्रम से भूत और वर्तमान का जानने वाला तीनबार रखे।
भूम्य भोऽग्नि मरूटोम महाभूतात्मका अमीवर्णाः पीतः सितो रक्त कृष्णे नील रूचि क मात
॥९॥ अर्थ :- यह अक्षर क्रम से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच भूतों के हैं हवक और क्रम से पीले, सफेद, लाल काले और नीली कांति वाले हैं।
पादांतन्नाभि हदक मस्तका गेषु पूर्वत् हत्वाक्षि प्रभृतीन वर्णान वाम हस्ते नियोजयेत्
॥१०॥ अर्थ:- फिर इन अक्षरों को पहिले के समान क्रम से पैरों नाभि हृदय, मुख और मस्तक के अग्रभाग में लगाकर बाये हाथ में लगावे ।
अंगुष्टादिषु सून्यानि विन्यसेत् पंच पूर्ववतः। अर्हदादिस नातादि शिरः पादौ नियोजयेत्
॥११॥ अर्थः- फिर पहले के समान अंगूठे आदि से पाँच शून्यों और अर्हत् आदि को सीधे और उल्टे क्रम से लगाकर शिर से लगाकर पैरों तक में भी लगाये।
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