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________________ 95959595955 विद्यानुशासन 959595959526 निष्पन्न सिद्ध चक्रः पलं मेकं प्रत्य हं सवर्णस्थलभ्यते कर्तव्यः स च व्ययो दान पूजा सु सौ यदि दधति लोभतोऽर्द्ध दिवसे तस्मिन् व्ययं च नः करोति सिद्धि स्तस्य विनश्यति निश्चितो नात्र संदेहः ॥ १५ ॥ यह सिद्ध चक्र यंत्र प्रतिदिन एक पल (४तोला) सोना देता है। किन्तु उसको उस सब द्रव्य को दान और पूजा आदि में खरच कर देना चाहिये ! यदि साधक उस द्रव्य में से आधे को लोभ से रख लेगा उस दिन खर्च न करेगा तो उसकी सिद्धि निश्चय से नष्ट हो जाती है। इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। इति लघु सिद्ध चक्र यंत्रोद्धारः 139545 字 1481 d 22 p स R (4.389 r ६ ५ 赵 मु $ al 151 ३२ ॐ 5# 54Et M 4 ॥ १४ ॥ F Es ぐりぐりですぐすでに5053 ちらりでちらですぐり
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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