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________________ SSIOSRISRISTOR5E5 विधानुशासन HSRISDISCISIONSCIES प्रेतवन वस्त्र रखर्पर मध्टगतं तालाकादिभि ल्लिरखतं यंत्रं यः पूजये प्सितं स्थंभयती प्सित कार्य चक्र भूमंडलांस्थं ॥८॥ यह यंत्र पृथ्वी मंडल के अंदर श्मशान के वस्त्र के ऊपर खर्पर के मध्य में हड़ताल आदि से लिखा जाने पर अपने इच्छित कार्य का स्तंभन करता है। जल मंडल मध्यगतं यंत्रं यः पूजयेत्सितैः कुसुमैः हिम चंदनं स लिरिवतं शांति पुष्टिं वशं करोत्येवं ॥९॥ यदि इस यंत्र को जल मंडल के बीच में कपूर और चंदन से लिख कर श्वेत पुष्पों से पूजन किया जाये तो यह शांति पुष्टि और वशीकरण को करता है। तिल तुष सर्षप लवणैः हामं कृत्वात्रिकोण कुंडतले। सप्त दिनानं मध्टो रामा कृष्टिं करोत्येवं ॥१०॥ यदि इस यंत्र को त्रिकोणकुंड के नीचे रखकर उनमें तिलों के छिलको सरसों और लवण से होम किया जाये तो पता रात दिन के अन्दर सनी आकर्षण काला है। पवन पुरस्थं यंत्रं वायसपिच्छेन कनक गरलायौः भूज्ज विलिरव्य निहितं भूमौ विद्वेषणो उच्चाटं ॥११॥ यदि इस यंत्र को यायु मंडल के बीच में कौवे की पूँछ की कलम से तथा कनक (धतूरे) गरल (यत्सनाम विष) आदि से भोजपत्र पर लिखकर भूमि से रख्खे तो यह विद्वेषण और उद्याटन करता है। आग्नेय पवन मंडल मध्यगतं प्राचटोत् मिदं यंत्रं आरक्त कुसुम जाप्पै वंशयाति वनितां पुमांसं वा ॥१२॥ यदि इस यंत्र को अग्निमंडल और वायुमंडल के बीच में लिखकर पूजा जाये और लाल फूलों के ऊपर जाप किया जाये तो यह स्त्री या पुरुष दोनों को ही वश में करता है। वर्षाणि पंच नित्यं यो प्यायति शुद्ध चेतसा यंत्रं रहितो जप होमायै दुर्द्धर तुर्य व्रतो पेतः ॥१३॥ जो पुरुष इस यंत्र का शुद्ध चित्त से पाँच वर्ष तक ध्यान करता है उसको जप तथा होम आदि से रहित होने पर भी अत्यंत कठिन तुर्यव्रत (चौथा व्रत ब्रह्म चर्य) से युक्त होने के कारण से । SSIOISTRISRIDDISEDI5015 २३५35052I5TOTRICISDISCISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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