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विधानुशासन Po9595959595
सप ( स से आगे वाला ह अक्षर में अनुस्वार लगे हुवे अर्थात् हं बीज के ऊपर और नीचे रेफ (र) बीज सहित अर्थात् (F) को ब्रह्म (ॐ) और सोलह स्वरों से वेष्टित करे। उसके बाहर आठ दल के कमल में वर्ग सहित अनाहत बीज लिखे तथा पत्रों के अंतराल में तत्व (णमो अरहंताणं) लिखकर ह्रीं कार से वेष्टित कर क्रों से निरोध करें। जो इसका ध्यान करता है। वह कर्म रूपी शत्रुओं रूपी हाथी को जीतने के लिये सिंह के समान है।
चामीकर लेखिन्या हिम मलयज गोरोचनादिभिर्विलिखेत श्वेतवर भूर्जपत्रे फलके वा ताम्र पत्रेवा
गंधाक्षत प्रसूनश्चरुकें दीपश्व धूप फलामलैः निवहैरभ्यर्च्य जपे नित्यं पुष्पैरष्टोत्तर च शतं
॥ ४ ॥
इस यंत्र को अत्यंत सफेद भोजपत्र पर या फलक (तख्ती) या ताम्रपत्र के ऊपर चामीकर (सोने)
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की कलम से कपूर चंदन गोरोचन आदि से लिखे ।
इस यंत्र को गंध अक्षत पुष्प नैवेद्य दीप धूप और फूलों के समूह से प्रतिदिन पूजन करके फूलों से एक सो आठ प्रमाण यह मंत्र जपें ।
विनयादि नमत पदं भुवनाधिप मूलबीज पंच गुरून उधार्य ततोऽनाहत विद्यायै मूल विद्यायै धेयं ॐ ह्रीं हं असि आउसा अनाहत विद्यायै नमः
पूज्यतो नित्यमिदं भक्त्या श्री सिद्धचक्रमुतमं यंत्र दुष्टग्रह शाकिन्योयां त्युप शांतिं
क्षणात्तस्य
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आदि में विनय (ॐ) और अंत में नमः पद लगाकर भुवनाधिप मूलबीज (हैं) और पांचो गुरू (असि आउसा) को खोलकर अनाहत विद्यायै लगावे यह मूलमंत्र है।
॥ ६ ॥
भगंदरादयोरोगाः शांतिमुपयांति
॥७॥
कुष्ट गल गंडमाला नश्यंति अन्ये प्यराति वर्गाः क्रूरा अपि इस उत्तम सिद्ध चक्र यंत्र का भक्ति पूर्वक प्रतिदिन पूजन करने से दुष्ट ग्रह और शाकिनीया तुरंत ही शांति को प्राप्त हो जाती है। इस मंत्र से कोठ गले की गंड माला और भगंदर आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। इससे दूसरे क्रूर शत्रु वर्ग भी शांति को प्राप्त हो जाती है । 95952959595959 २३४PSP1
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