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________________ 95959595 विद्यानुशासन 9595959 पंचम अध्याय प्रारम्भ अथातः संप्रवक्ष्यामि येभ्योनेक फलोद्भय तेषां सामान्य यंत्राणां यथा शास्त्रमिमं विधि ॥ ५ ॥ अब अनेक प्रकार के फलों को उत्पन्न करने वाले सामान्य यंत्रों की विधि का वर्णन पूर्व शास्त्रों के अनुसार किया जायेगा । सिद्ध चक्र विधानं व्योमोद्धघोरं युक्तं सिरसि विलसितं नाद बिंदुद्धचंद्रैः स्वाहांतोकार पूर्वैः गुरु भिरभिद्युतं पंच भिस्तु स्वरैश्च वाह्येष्ट स्वब्ज पत्रेषु क च ट त पयोष्मादि वर्णन जादीन् स्वाहांतानांतराले प्रथम गुरु पदं माययात्रिः परीतं ॥ ३ ॥ ऊपर रेफ नीचे रेफ सहित आकाश बीज ह के ऊपर अर्द्ध चन्द्रकार का नाद बिन्दु लगाया जाये फिर पहले ॐकार को आदि में तथा स्वाहा को अंत में लगाकर पांचो गुरु बीजों का "असि आउसा" स्वरों सहित लिखें । उसके बाहर के आठो दलों में क्रमशः कवर्ग, चवर्ग, दवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, यवर्ग, उष्म और अवर्गों को लिखे। उनके आदि में अज (ॐ) अन्त में स्वाहा लगाकर अंतराल में प्रथम गुरूपद णमो अरहंताणं लिखकर मायाबीज हीं का तीन बार वेष्टन करे। मध्ये पि कर्णिकायाः पत्राने श्वप्पनाहतं समाख्यातं वर्गस्यातं स्यातं मरुतं स्वेनोतमांगेन् पाठांतरं उद्धघोरयुतं सबिन्दु सपरं ब्रह्म स्वरा वेष्टितं वर्गपूरितदितां बुजदलं तत्संधि तत्यान्वितं ॥ २ ॥ अंत्रः पत्र तटेष्यबनाहत युतं ह्रींकार संवेष्टितं देवं ध्यायति यस्य मुक्ति सुभगो वेरिभ कंठीर वः Chesse P5Pg २३३P/5195 क ॥ ४ ॥ कर्णिका के मध्य में और पत्तों के अग्रभाग में अनाहत नाम का बीज ॐ ह्रीं और वर्गो के हकार को अपने उत्तम अंग अर्थात् सिर रहित लिखे । 118 11 ॥ २ ॥ ですですです
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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