________________
CRORSCISIOMSXCISIO विघाशुपएसन 95015105015015015
जाटते तेन सद्य: सकल मपि विर्ष तेन रोगाश्च सर्वे
विश्वे शूलाश्य कृत्साधिक विष विकृति कंटकेभ्य आ जातां भूबीजं (लं) बिन्दु सहित गणधर बीज () निधन मृत्यु बीज और लांत बीज (व) यह चारों बीज पृथ्वी भर में सब रोगों के मंत्र कहे गये हैं। इनसे सभी विष सभी रोग और सभी प्रकार के कृत्रिम विष विकार और मंदों से पैदा हुई श्री दूर हो पाते हैं।
इत्थं मंत्राराधन विद्य मिह विधिपूर्वकं करोतु बुधः
नित्यमनालस्ट मनाय दिष्टस्य मना सिद्धि समीहेत पंडित पुरूष यदि अपने इच्छित कार्य की तुरंत सिद्धि करना चाहे तो इसप्रकार की आराधना करने की विधि को नित्य ही आलस्य को छोड़कर क्रिया करे।
एते मंत्रादहोक्ता दयित विधिगताः साधिता टोन सम्यक तस्यानुक्तान्यपि प्राक सत्तत जपा वशात् संतिदिधुः फलानि। तस्मोदेतेषु मंत्री कम रचित महामंत्र मेकं जपाय:
नित्यं सं सेव्यमानः सकलमपि फलं प्राप्यालोक पूज्य: जो पुरुष इन प्रायः विधि याले मंत्रों को भली प्रकार सिद्ध करता है उसको यंत्र मंत्र उसके जप के यश से फल देते हैं। इस वास्ते मंत्री इनमें से एक क्रम से बने हुये महामंत्र को नित्य जपता हुआ संसार भर में पूज्य होकर सम्पूर्ण फल को प्राप्त करता है।
इति इति आर्षे विद्यानुशासने सामान्य मंत्र साधन विधानं नाम चतुर्थः समुद्देशे :
Bywww