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9696959696 विधानुशासन
9595959595 वेष्टयं
पद्मस्य
तस्याष्ट दलस्य मध्ये ह्रींकार
प्रणवावृतो है दिग्दत्त मंत्रादिक सप्त वर्णा माया नमोंतं सदा जपंतु ॐ ह्रीं हैं णमो अरिहंताणं ह्रीं स्वाहा विदिग्धमंत्र : ॐ ह्रीं हं णमो अरिहंताणं णमो अर्हन् स्वाहा दिग्मंत्र : ॐ ह्रीं है णमो अरिहंताणं ह्रीं नमः
जपमंत्र:
एक अष्टदल कमल के बीच में हैं को ॐ और ह्रीं से वेष्टित करके उसके आठों पत्तों में दिशाओं में और विदिशाओं में विशा और विदिशा के मंत्र लिखे । इनमें से दिशाओं के मंत्र में के सप्तवर्ण पद ( णमो अरहंताणं) के पश्चात माया (ही) और कर सदा जप करना चाहिये ।
समस्त फलद नाम चक्रमें तत्समर्चितं नष्टादि ज्ञानमारोग्यं मेघां मुक्तिं च यच्छति
इस समस्त फलद नाम के चक्र का पूजन करने से खोई हुई वस्तु आदि का ज्ञान तथा आरोग्य होता है यह बुद्धि मुक्ति को देता है।
प्रणवा वृतं अहं ह्रीं कार वेष्टितं मध्ये यहि ॐ ह्रीं हैं णमो अरहंताण ह्रीं नमः अष्टस्सु पत्रेषु प्रत्येकांलिखेत्
अर्ह ॐ से वेष्टित करके बाहर ॐ ह्रीं हैं णमो अरहंताणं ह्रीं नमः हर एक आठों पत्रों में लिखे । समस्त फलद् चक्रं
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