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एक अष्टदल कमल की कर्णिका में ॐ सुंदरी स्वाहा लिखकर आठोदलों में ॐ परम सुंदरी स्वाहा लिखे ।
कृष्ण तिल तेल पूर्ण कुंभेः कृतो कुलाल करज मृतिका पात्र आलक्तक वार्तितकृते दीपेन्यग्रोध वह्निभवे ॥ ४ ॥
प्राग विहित्तैत विधिना सायक्षी सन्निधि समासाध्य भूतं भवच्च भावि च निवेदयदपि तथं प्रष्टार्थ
॥ ५ ॥
कुम्हार के हाथ की मिट्टी के बनाये हुये दीपक में काले तिल का तेल भरकर, आलक्तक से लपेटे हुई बत्ती डालकर, वट वृक्ष की लकड़ी की आग से दीपक को जलाये- शेषक्रिया पूर्ववत् है। पूर्वोक्त विधि से ही वह यक्षिणी पास आकर सभी भूत भविष्यत वर्तमान कार्यों को बतलाती है ।
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श्रवण पिशाचिनी चामुंडे स्वांहातः प्रणव पूर्व उचार्य: । सिद्धयति च लक्ष जापा कर्ण पिशाचिन्यं मंत्र:
मंत्र परिजप्त कुष्टं हन्मुख कर्णाह्न युगल मालिप्य सुप्तस्य कर्ण मूले कथयतिया चितितं कार्य
॥ १ ॥
विनयः प्रथमं पश्चात शुलभ सुप्रभे ततः होम कर्ण पिशाचीति मंत्रोयं मंत्रिभिः स्मृतः ॐ शुलभ सुप्रभे स्वाहा
॥ २ ॥
ॐ ह्रीं श्रवण पिशाचिनी चामुण्डै स्वाहा ॥
यह कर्ण पिशाचिनी मंत्र एक लाख जाप से सिद्ध होता है। कुठ को २१ बार इस मंत्र से अभिमंत्रित करके अपने हृदय मुख दोनों कान और दोनों पैरों को इससे पोते तो कर्ण पिशाचिनी सोते हुए में सोचे हुए कार्य को कान में कहती है।
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पहले विनय (ॐ) लगाकर फिर सुलभ शुप्रभे लगाने से और अंत में होम (स्वाहा ) लगाने से कर्ण पिशाचिनी का मंत्र का कहा जाता है।
दरी कदंब पुष्पैः स्तिल पिष्ट युतेने माष चरूणां च मूलस्थं धनपति मभ्य यष्टाक्षरी मिमां विद्यां
9595959595 PAPA २२६ PSP5959595955
॥ ४॥