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________________ 252525252525 dagenda 25PSY5YS2595 ॐ नमो उमापतये सर्वसिद्धि देहाय देवानु चराटा महायक्ष सेनाधिपतेय इदं मे कार्य कथय कथय कथापय कथापय तद्यथा कथापय कथापय तिष्ठ तिष्ठ लक्ष जय सिद्ध मेतं राद्रं मंत्र प्राप्ण पुस्कृत धूपदेश स्वन्योनि स्मृत मर्य तत्र कोपि कथेयद्देवः इस रौद्र मंत्र को एक लाख जप से सिद्ध करने पर देवता धूप इत्यादि से शुद्ध इच्छित अर्थ को कहता है । || 30 ||| किये प्रणवोथ वद द्वं द्वं माश्रु शुक्षणि वल्लभा अग्नि वल्लभा स्वाहेति अयं कर्ण पिशाचस्य मंत्री मंत्र विदांमतः ॐ वद वद स्वाहा हुए स्थान लक्ष प्रजप सिद्धं गुड मिश्रित पायसेन तरुमुले व्युदय एक मासं वैश्रवण स्वार्चितस्य पुरतो मंत्रः ॥ २२ ॥ प्रणव (3) दो बार वद आशु शुक्षिणी वल्लभा (स्वाहा ) सहित मंत्र को मंत्र शास्त्रियों ने कर्ण पिशाची मंत्र कहा है। इस मंत्र को सूर्य उदय के समय वृक्ष के नीचे कुबेर के सामने गुड़ मिली हुई खीर से एक मास तक एक लाख जप करके सिद्ध करें। अष्टोत्तर सहस्रं प्रजपे घृते न होमं कुर्वित पक्ष मेकं ततोऽवसाने निशा मध्ये || 33 || और मालकांगनी के घृत से एक पक्ष तक रात्रि के समय होम करता हुआ एक सो आठ बार जपे । जुहुयाद अंकोल वृत्तै सहस्रमथकोपि कर्ण मूले यक्षः सिद्धस्यै जपात भूत भवद्भावि वस्तु सं सिद्धत्य विलं ॥ २४ ॥ इसके पश्चात अंकोल (ठे रे ) की टहनी के अग्र भाग से एक हजार हवन करने पर यक्ष सिद्ध होकर साधक के कान में भूत भविष्यत और वर्तमान की सब बाते कहती हैं । PSP595959SPAPA २१७PS9596959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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