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________________ 95951959595 विधानुशासन 959695959न ॥ जभल विधान ॥ माणिभद्र महासेन यक्षाधिपतये ततः जंभलाय ज्वल द्वंद्व मिंद्रानल कामिनी मागि भद्रारा पूर्ण भ्रतारा चेलि मालिने विविध कुंडलिने विकुदलिने नरिंद्राय चरेन्द्राय नमः ॐ माणिभद्र महासेन यक्षाधिपतये जंभलाक्ष ज्वल ज्वर इंद्राय उनल कामिनी मणिभद्राय पूर्ण भद्राय चेलि मालिने विविध कुंडालिने विकुदलिने नरेन्द्राय चरेद्राय नमः ॥ १ ॥ अंगानि कथितो मूल मंत्रोटयंषडभिरंगैः समन्वितः विज्ञातव्यो विपश्चिद्भिरस्मिन जंभल देवता ॥ २ ॥ अंगों का वर्णन पहले ही किया जा चुका है उस मूल मंत्र को छहों अंगों से युक्त पंडितों को जानना चाहिये इसमें जंभल देवता मुख्य है। न्यस्य कनिष्टावं गुष्ठांतं वर्णान प्रभां मंत्रस्य न्यस्येत्तज्र्जन्यं ते जेष्टाद्यं गानि लोचनां चलवो फिर इस मंत्र के न्यास करे । मूल 113 11 पदों को क्रम से सिर मुख हृदय गुह्य दोनों पैर और दोनों नेत्रों में क्रम से विन्यस्य शिरसे वक्रं हृदि गुह्यं पादयोश्च मंत्रस्य मूल मंत्रस्य पदांन्यागान्य थ नेत्रांतं क्रमात्न्यसेत् ॥ ४ ॥ फिर इस मंत्र के मूल पदों को क्रम से सिर मुख हृदय गुह्य दोनों पैर और दोनों नेत्रों में क्रम से व्यास करे। विन्यस्य त्रिमुख वरणे सितं पकंज रुदे न पिंगल वर्णन शुभपट्टाहार कुंडल केयूराभरण रामेण ॥ ५॥ फिर तीन मुख वाले श्वेत वर्ण युक्त श्वेत वर्ण युक्त कमल पर चढ़े हुये पीले वर्ण वाले अच्छे अच्छे हार कुंडल और बाजूबन्द के आभूषणों से सुंदर OSPSSPPSP594 २१८P/512/51 シング
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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