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________________ 5215105015121505 विद्यानुशासन 051015105PISODS आदितः प्रणवो हस्ती पिशाचीति ततः परं तस्या परेलिरवेत् शब्दः स्यादंते द्वितां ठयो ॥१४॥ आदि में प्रणव (3) और फिर हस्त पिशाची पद लगाकर अंत में ले शब्द सहित ठयोः (ठं) पद को दो तार लगाते! ॐ हस्ति पिशाची लं ठंठं अयं मुचिष्ट गजानन मंत्रः पूर्वेण भवति मंत्रेण तुल्योऽस्मिं स्तुजपादीनकुर्याद्ऽशुचि भवेन्मंत्री ॥१५॥ होमो वशयेद हृद्रत स मंत्र स्याऽद्भर्यभिरवान यंत्रायाः कुटिषा ताया: मोम सित्येकप्रति प्रतिमा कृत्या उपरितेन रवदिराग्नौ ॥१६॥ यह उधिष्ट गजानन मंत्र है इस मंत्र में पूवोक्त गणेश मंत्र के समान ही जप आदि को पवित्र होकर करे साध्य के आकार की प्रतिमा बनाकर उसके हृदय में आधे नाम को मंत्र सहित लिखकर डाल दें। फिर मूर्ति को खेर की अग्नि में डालकर हवन करने से यशीकरण होता है। (सित्येक क्यमोम प्रतिमाया) साध्याऽरट्यान विदर्भित एष धतोभूदलै समालिस्वतः अथवा तथैव जपो वश्यं विदधाति तं साध्य ॥१७॥ अथवा इस मंत्र के साथ साध्य के नाम को विदर्भित ( दो दो मंत्र) के अक्षरों और एक एक नाम के अक्षरों को (गूंथकर करके) लिखकर पृथ्वी पर रखे और वे से ही विदर्भित मंत्र का जाप करने से तथा होम करने से साध्य वश में हो जाता है। उकार स्फार रूप इत्यस्य नित्यपाठं प्रकर्तव्य इस स्तोत्र का नित्य ही जाप करना चाहिये। ॐ त्रिजट वामन दुलंबोदर कटु कटु कथय कथय हुं फट ठः ठः हां ही हूं ह्रौं हः अंगानि मंत्र जपे त्रिलक्षं वामनऽमत्यर्थ विविध भक्ष्याधैः सुप्तस्यं तं जपित्वा कर्णेशं सेत्स इष्टार्थ ॥ १८॥ इस वामन मंत्र का अनेक प्रकार के भोजन आदि से युक्त होकर तीन लाख जपे तो जप करके सोने से इसके कान में इच्छित अभिप्राय को कहता है। STERISPISODRISICISIOTS २१६PISTRIE5I052501585
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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