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________________ ! : i 9595905955Pg विधानुशासन 51951 गंध ॐ गंधोल्काय स्वाहा ॐ गंधे कथितोक्लाप स्वाहा धूपं ॐ गुणोक्लाय स्वाहा दीपं ॐ मोपोक्लाय स्वाहा नैवेद्यं ॐ कचोक्लाय स्वाहा विसर्जनं वृहदुदरमरुण वर्ण गज वदनं गज मुखं महायक्षं युक्तं भुजैश्चतुर्भिः पाशांकुश दंत भक्ष धेरै बड़े पेट वाले, रक्तवर्ण वाले हाथी की सूंड सहित हाथी के से मुखवाले, पाश अंकुश धारण करने वाले चार भुजाओं से युक्त महायक्षं का ですわらわら दंत श्वेतार्क शिफा कुचंदन द्विपविभाग्न निवांनां अन्यतमेन कृतं गजवदनं स्पष्टा शशि गृहणे आत्मकैन ध्यायन षडलक्षं जपतु तस्य मंत्रमऽमुं होमंचास्य दशांशं करोतु सिद्ध ततो मंत्र साध्यस्यो परिपाशांकुशापनीतस्य संस्थितं ध्यायन् नात्मानं मंत्र ममुं जपेत्स सद्योभवं द्वश्यः ध्यान करता हुआ उसके मूल मंत्र का छ लाख जप करे और दसवाँ अंश होम करे तो मंत्र सिद्ध होता है | साध्य के ऊपर पाश अंकुश से युक्त मूर्ति का ध्यान करता हुआ यदि मंत्र जपे तो वह तुरंत ही यश में हो जाता है। ॥५॥ 113 11 दंत और भोजन तज्जप्तमऽमर्क तूलाऽलक्तक वर्ति धृताक्ताया कज्जलम क्ष्णौ वश्यं सरसी रूह सूर वर्तव 959595959PSPSS २१४PSPS ॥ ४ ॥ ॥ ६॥ मंत्री कृतोपवाशोपजपेऽयुतं तदनु शिरसि गजवदनः सघृतः कुरुते विजयं वाद व्यवहार स्मरादौ दंत सफेद आक की जटा, क्रुचंदन (लाल चंदन) हाथी से तोड़े हुये नीम उनमें चन्द्रग्रहण में गणेशजी का अनुष्ठान करे। मंत्री उपवास करके इस मंत्र को घी सहित जपे तो गणेशजी शास्त्रार्थ व्यवहार और युद्ध में विजय करते हैं। | 19 || से किसी से भी ॥ ८ ॥ うたちゃらです
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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