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________________ DISTRI50150151015125 विधानुशासन 955550150150151005 किंतु भवतापि न दातव्यं सम्यग्दृष्टि वर्जिताय पुरुषाय किंतु गुरू देव समो भक्ति मते गुण समेताय ॥३८॥ लाभादथवा स्नेहाद्दास्यसि चन्दन्य समयभक्ताय बाल स्त्री गो मुनि वद्य पापंय यद्भविष्यतिते ॥३९ ।। । तुम भी इसको सम्यक्त रहित पुरुष को न देना किन्तु देव गुरु और शास्त्र में भक्ति रखने वाले और गुण बाण को ही देना यदि तुम इसको लोभ या प्रेम से अन्य मतावलम्बीयों को दोगे तो तुमको बालक, स्त्री मुनि और गाय की हत्या का पाप लगेगा। इत्येवं श्रावयित्या तं सन्निधौ गुरू देवयोः मंत्री समर्पयन्मत्रं मंत्र साधन योगतः ॥४४॥ इसप्रकार मंत्री उसको गुरू और देजया के सामने शापय देवर अंगावर के शिया के अनुसार मंत्र दो। इति aahe सुंदरी ॐ परम ॐ परम सुंदरी सुंदरी स्वाहा । सुदरी ॐ परम ॐ परम सुंदरी ॐ परम ಗಡಿಪಾಯ ??YOಥಳಗಾಟ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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