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________________ 9595295951 विधानुशासन PPPSP59595 उसके ऊपर अत्यंत बड़ा मंडल बनाए जो सुगंधित पुष्प से भरा हुआ हो और चन्द्रमा के समान उज्वल ध्वजा घंटा और सुंदर दर्पणों से युक्त हो । पंच परमेष्ट्री मंत्रं प्रत्येकं प्रणव पूर्व होमांतं अष्टदल कमल मध्ये हिम कुंकुम मलयजे विलिखेत ॥ ३२ ॥ यह बीच का मंडल आठ दल कमल के आकार का हो। उसकी कर्णिका में कपूर चंदन और केशर से अर्हदृश्य स्वाहा आदि को लिखे । पूर्वाशादिषु दद्यात् जयाति जंभादि का दलेषु ततः तद्दक्षिण दिग्भागे हेममयं पादुकं देव्याः || 33 || उसके पूर्व आदि आठों दलों में ॐ जयायै स्वाहा आदि मंत्र लिखकर उसकी दक्षिण दिशा में देवी की स्वर्णमयी पादुका बनाये । अन्य गय तंदुल कुसुमनिवेद्य प्रदीप धूप फलैः परमेष्टिनां मंत्र भैरव पद्मावती पादौ ॥ ३४ ॥ , धूप, उस यंत्र की पंच परमेष्ठी के मंत्र से और देवी के धरणों की चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, और फल से पूजा करें। देवगुरू शास्त्र भक्तं शुद्धधीरं महाज्ञानं कृत वस्त्रालंकारं स्नानं तन्मंडलाभि मुखं ॥ ३५ ॥ संस्थाप्य चतुः कलशैः सहिरण्यैस्तं ततोऽन्य वस्त्रादीन् तस्मै मंत्र निवेदयेदुरु कुलाऽयातं ॥ ३६ ॥ दत्या फिर एक अन्य शास्त्रों से विमुख जिनेन्द्र देव और जैन गुरू में भक्ति रखने वाले शिष्य को स्नान कराके वस्त्र और अलंकार पहनाकर मंडल के सामने लायें। और पूर्व से ही यंत्र के चारो तरफ कोणों में रखे हुये चारों कलशों से उसको स्नान करावे और उसे अन्य वस्त्र आभूषण आदि पहनाकर गुरू क्रम से चला हुआ मंत्र दे और कहे। भवेतऽस्माभि र्द्दतो मंत्रोद्यं गुरु परंपरायातः साक्षी कृत्य हुतासन रविराशि तारां वरादि गणान् ॥ ३७ ॥ तुमको मैने यह गुरु परम्परा से चला आया हुआ मंत्र अग्नि सूर्य चंद्र नक्षत्र आकाश की साक्षी पूर्वक दिया है। 95Ps60 PSPSPG २११PPSP5959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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