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________________ 95959595955 विद्यानुशासन 259595959595 हे सरस्वती बोधमत में तुम तारा नाम के प्रसिद्ध हो। शैवमत में गौरी नाम से प्रसिद्ध हो। कौल मत में वजानाम से, जैनमत में पद्मावती के नाम से, वैदिक मत में गायत्री के नाम से और सांख्य मत में प्रकृति के नाम से प्रसिद्ध हो । ज्यादा क्या कहा जाए। तुमने सम्पूर्ण जगत को व्याप्त कर रखा है ! संजप्ता कणवीर रक्त कुसुमैः पुष्पै चिरं संचितैः संमिश्रै घृत गुग्लोध मधुभिः कुंडै त्रिकोण कृते होमार्थ कृत षोडशांगुलि समे वन्हौ दशांशं जपेत् तां वाचं वद सिंह वाहि सहसा पद्मावती विश्रुता लाल कनेर के जपकर इकट्ठे किये हुवे सूखे फूलों में घी, गुग्गल और बूरा मिलाकर जाप की हुई संख्या का दशांस सोलह उंगुल वाले त्रिकोण कुंड में होम करे, तब हे सिंहवाहिनी पद्मावती देवी उसको वर देने वाली वाणी बोलो । || 20 || पाताले ध्यूषिता विषं विष्षधारा धूर्णति ब्रह्माडंजा : स्वर्भूमी पति देवदानव गणाः सूर्येदुज्योति गणाः कल्पेन्द्रा स्तुति पाद पंकज नता मुक्ता मणि चुंबिता: सा त्रैलोक्य नता नति स्त्रिभुवने स्तुत्या सर्वदा ॥ २१ ॥ पाताल में रहने वाले विष से भरे हुवे नाग तुम्हारे प्रभाव से विष रहित हो जाते हैं। ब्रह्मांड में पैदा होने वाले स्वर्गपति कल्पवासी और भूमि पति दानव और उनके नन्दादि देवगण सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र इत्यादि तुम्हारी स्तुति करके तुम्हारे चरणों में नमस्कार करते हैं। कल्पवासी देवों के इन्द्र तुम्हारी स्तुति करके नमस्कार करते हैं। और उनके मुकुटों के रत्न तुम्हारे चरणों को छूते हैं। और सारे त्रिलोकी तुम्हारी स्तुति करते हैं और तुम्हारे आगे अपना सर झुकाते हैं । ह्रींकारे चन्द्र मध्ये पुनरपि वलये षोडशावर्त्त पूर्णे बाह्य कंठेर वेष्टेत कमल दल युते मूलमंत्र प्रयुक्त साक्षात्तत्रैलोक्य वश्यं पुरुष वशकृतं मंत्र राजेन्द्र राजं ॥ २२ ॥ ततत्तत्व स्वरूपं प्रथम पद मिदं पातु मां पार्श्वनाथ: ह्रीकार के अर्द्धचन्द्र में सोलह आवर्त्त से भरे हुए मंडल में जिसके बाहर रकार का बेष्टन है उन कमल दलों में पद्मावति देवी का भूलमंत्र एवं श्री पार्श्वनाथजी का ध्यान त्रैलोक्य को वशीकरण करता है। पुरुष को वश करता है यह यंत्र सब मेरी और यंत्रों का राजा है ऐसे यंत्र में विराजमान श्री पार्श्वनाथजी मेरी रक्षा करें। 95PSPS‍SPPSP २०८ PSPSPSP5959523
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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