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________________ CARDISTRISTOTRIOTSIDE विद्यानुशासन BIDIDISADSEISIOISTRIES भक्तानां देहि सिद्धिं मम सकल मलं देवि दरी करूत्वं सर्वेषां धार्मिकानां सतत निय मितं वांछितं पूर यस्वं ॥२३॥ संसाराऽब्यौ निमग्नं प्रगुण गुणयुतं जीव राशिं च रक्ष श्री मज्जैनेन्द्र धर्म प्रकटय विमलं देवि पद्मावति ॥२४ ।। है देवी ! भक्तों को सिद्धि दो मेरे सम्पूर्ण मेले पन को दूर करो स्वधार्मिक लोगों की इच्छा को पूरी करो। संसार रूपी समुद्र में डूबे हुए गुणगान करने वाले प्राणियों की रक्षा करोऔर हे पद्मावती देवी निर्मल जिन धर्म को प्रकट करो। क्षुद्रोपद्रवरोग शोकहरिणी दारिद्रय विद्राविणी व्याल व्याघ हरा फॉण त्रयघा दहमा मासमा पातालाधिपति प्रिय प्रणाली चिंता मणि प्राणिनां श्री मत्पाशी जिनेश शासन सुरी पद्मावती देवता अनिष्टकारी देवताओं से पैदा किये गये रोग और शोक को हरने वाली, दारिद्र को हटाने बाली, दुष्ट हाथी व्याघ्र शेर से बचाने वाली , तीन सर्प हाथ में लिये हुए जिसके देह की कांति बहुत दे दीप्यमान है, पाताल के राजा धरणेन्द्र की प्रेम पात्र और प्राणियों के मनोरथ पूरा करने वाली चिंतामणी पार्श्वनाथजी की आज्ञा में रहने वाली हे पद्मावती देवी हमारी रक्षा करो। मातः पधिनी पद्म राग रूचिरे पद्मप्रसूनने पने पद वन स्थिते पारिल सत्पशिक्षि पद्मासने पद्मा मोदिनी पर राग रूचिरे पद्म प्रसूनाचिंते पद्मो लासिनी पद्मनाभि निलये 'पद्मालो पाहिमां ॥२५॥ माणिक्य जैसी कांतिवाली कमल पर विराजमान होने वाली, कमल वन में रहने वाली, कमल समान नेत्रयाली, कमल की सुगंध रखने वाली, कमल से पूजित कमल की कर्णिका में रहने वाली पद्म नामक पीठ पर बसने वाली कमल में रहने वाली हे पावती देवी मेरी रक्षा करो। दिव्य स्तोत्रं पवित्र पटुतर पठितं भक्ति पूर्व त्रिसंध्यं लक्ष्मी सौभाग्य रूपं दलित कलि मलं मंगलं मंगलानां पूज्यं कल्याण मालां जनयतु सततं पाश्वनाथ प्रसादात् देवी पद्मावतीनः पहसित वदनाया स्तुता दानवेन्द्रैः।।२६ ।।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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