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155 विद्यानुशासन PPS
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वज्र है, कमलासन पर बैठी हुयी है। भावनासुर और कल्पवासी सुरेन्द्रों द्वारा पूजनीक है तथा तीर्थंकरों के नैसर्गिक उत्पातों को नाश करने के कारण कल्प वासी देवेन्द्रों की पूज्य है। भयंकर हूंकार शब्द करने वाली और (कार) एक नाद अर्द्ध चन्द्र विन्दु) ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः इस मंत्र भय रूप को धारण करने वाली हे पद्मे देवी आप मेरे पापों को नष्ट करें।
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कंपं झं वंस हंसः कुवलय कलितोद्दाम लीला अबंधे झां झीं झं झः पवित्रे शशि कर दवले प्रक्ष रत् क्षीर गौरे वालव्या वद्ध जूटे प्रबल बल महाकाल कूटं हरती हाहा हूंकार नादे कृत कर कमले रक्ष मां देवी पद्मे ॥ ७ ॥
कं पं झं वं स हंसः इन सात अक्षरों से सारे भूखंड में अपनी लीला फैलानी वाली अथवा नीलकमल के यास होने के कारण वहाँ अपनी लीला फैलाने वाले झां झीं झं झः इन चार अक्षरों से पवित्र चन्द्रमा की किरणों जैसी सफेद, बहुते हुये दूध के समान गोरी और जिसके जटा जूट में सांप बंधे हुये हैं, शत्रु में जिसके कमल है ( क+आ+रें क्राँ) हा हा हूं और क्राँ इस मंत्रमय स्वरूप वाली हे पद्मादेवी आप मेरी रक्षा करें।
प्रातर्बालार्क रश्मि छुरित धन महा सांद्र सिंदूर धूली: संध्या रागरूणांगी त्रिदशवर वधू बंध पादार विंदे | चंच च्वंडा सि धारा प्रहत रिपुकुले कुंडलोद घृष्ट गंडे श्रां श्रीं श्रं श्रः स्मरती मद गज गमने रक्षमां देवी पद्म
॥ ८ ॥
प्रातः काल में उदयमान सूर्य की किरणें जिसपर पड़ रही हैं ऐसी घनी सिंदूर की टूल की तरह और उस वल्क के आसमान के समान लाल रंग वाली देवेन्द्रों की इन्द्रायणिया जिसके चरण कमल की। पूजा करती है। चमकने वाली भयंकर तलवार की धार से सारे शत्रु दल को मार डालने वाली, जिसके कान के कुंडल गाल पर घिस रहे है, मस्त हाथीके समान चलने वाली श्रां श्रीं श्रं श्रः इसको स्मरण करने वाली अर्थात् भावनासुर नागदेवादि अपने शत्रु असुरों को मारने के लिये जिसका स्मरण करते हैं- ऐसी पद्मावती देवी मेरी रक्षा कीजिये ।
गर्ज्जनीरद गर्भ निर्गत तडिज्वाला सहस्र स्फुरत् सद्वजोंकुशपाश पंकज कराभक्त्यांऽमरै रचिता सद्यः पुष्पित पारिजात रुचिरं दिव्यं वपुर्विभ्रता समां पातु सदा प्रसन्न वदना पद्मावती देवता जिसके हाथों में क्रम से वज्र, अंकुश, पाश और नागपाश व कमल हैं जो सजल
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॥ ९ ॥
मेघ के भीतर
एनएक